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US Visa: कर्मचारियों के लिए वीजा अप्रूव कराने में Amazon, Google और Meta सबसे आगे, भारतीय टेक कंपनियां पछड़ीं

US H1B Visa Approvals: नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी (NFAP) की नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वित्त वर्ष 2025 में H-1B वीजा अप्रूवल्स पर अमेरिकी टेक कंपनियों का कब्जा रहा, जबकि भारतीय IT फर्मों की मंजूरियों में पिछले दशक के मुकाबले भारी गिरावट दर्ज की गई।

अमेरिका के H-1B वीजा सिस्टम में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिला है। नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी (NFAP) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 के शुरुआती रोजगार वाले H-1B वीजा अप्रूवल्स में पहली बार चार अमेरिकी दिग्गज- अमेजन, गूगल, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट सबसे आगे निकलकर शीर्ष स्थानों पर आ गए हैं। वहीं दूसरी ओर, भारतीय कंपनियों की मंजूरियां लगातार गिर रही हैं। इससे यह साफ होता है कि अमेरिकी टेक सेक्टर में उनकी पकड़ कमजोर हो रही है।

बिग टेक कंपनियों को मिली रिकॉर्ड वीजा मंजूरियां
NFAP के विश्लेषण के अनुसार, FY25 में अमेजन 4,644 अप्रूवल्स के साथ नंबर-वन रहा। मेटा को 1,555, माइक्रोसॉफ्ट को 1,394 और गूगल को 1,050 मंजूरियां मिलीं। रिपोर्ट बताती है कि 2025 में AI पर होने वाला लगभग 380 बिलियन डॉलर का निवेश इन कंपनियों की भारी भर्ती का एक बड़ा कारण है। हालांकि, यह आंकड़े वास्तविक कर्मचारियों की सटीक संख्या नहीं दर्शाते क्योंकि लोकेशन बदलने पर भी नए अप्रूवल दर्ज होते हैं।

भारतीय IT कंपनियों की H-1B अप्रूवल्स में तेज गिरावट
NFAP रिपोर्ट में कहा गया कि वित्त वर्ष 2025 में टॉप 25 कंपनियों में भारत से केवल तीन कंपनियां ही शामिल हो पाईं। वित्त वर्ष 2015 की तुलना में शीर्ष सात भारतीय आईटी कंपनियों की H-1B मंजूरियां 70% गिरकर 4,573 रह गई हैं। यह संख्या वित्त वर्ष 24 से भी 37% कम है, जो इस बात का संकेत है कि अमेरिकी टेक सेक्टर में भारतीय कंपनियों की भूमिका धीरे-धीरे सीमित होती जा रही है।

कम कैप के कारण 3 लाख से ज्यादा आवेदन रिजेक्ट
अमेरिका हर साल केवल 85,000 H-1B स्लॉट जारी करता है, जिनमें 65,000 सामान्य और 20,000 यूएस मास्टर्स डिग्री धारकों के लिए होते हैं। वित्त वर्ष 2025 में कुल 4.42 लाख यूनिक आवेदक थे, लेकिन सीमित कोटा के कारण 3 लाख से अधिक आवेदन रिजेक्ट हुए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कैप अमेरिकी लेबर मार्केट की जरूरतों के मुकाबले बेहद कम है और इससे टेक सेक्टर में स्किल गैप बढ़ता है।

H-1B वर्कर्स ‘सस्ता श्रम’ नहीं 
NFAP ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वित्त वर्ष 2024 में औसत H-1B टेक सैलरी 136,000 डॉलर रही, जो यह साबित करता है कि विदेशी इंजीनियर सस्ता विकल्प नहीं हैं। पिछले दो दशकों में अमेरिकी जन्म वाले कंप्यूटर और मैथेमैटिकल फील्ड के कर्मचारियों की संख्या 141% बढ़ी है, जिससे यह भी साफ होता है कि H-1B वर्कर्स अमेरिकी नौकरियां नहीं छीनते। रिपोर्ट का दावा है कि अगर H-1B नीतियां कठोर रहती हैं, तो अमेरिकी कंपनियों को इन नौकरियों को विदेश भेजने पर मजबूर होना पड़ेगा।

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