सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल तक मुआवजे के लिए भटकती एक बिहार की विधवा को आखिरकार इंसाफ दिला दिया। रेल हादसे में पति की मौत के बाद मुआवज़ा पाने की उसकी लड़ाई लंबी और दर्दनाक रही, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद रेलवे ने 8.92 लाख रुपये उसकी बैंक खाते में भेज दिए। चीफ जस्टिस सूर्य कांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि गरीब के चेहरे पर मुस्कान लाना ही अदालत की असली कमाई है।
यह मामला 2002 का है, जब बख्तियारपुर स्टेशन पर भारी भीड़ के कारण एक यात्री विजय सिंह ट्रेन से गिरकर मर गया। उसके बाद उसकी पत्नी संयोगिता देवी ने मुआवज़े का दावा किया, लेकिन रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल और पटना हाई कोर्ट ने उसका दावा ये कहकर खारिज कर दिया कि मृतक मानसिक रूप से अस्वस्थ था। इस फैसले के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जहां अदालत ने निचली अदालतों के फैसले को “तथ्यों के विपरीत और पूरी तरह कल्पना आधारित” बताते हुए खारिज कर दिया।
लंबी कानूनी लड़ाई का अंत
अदालत ने 2023 में रेलवे को आदेश दिया कि महिला को दो महीने के भीतर चार लाख रुपये और छह प्रतिशत ब्याज के साथ मुआवज़ा दिया जाए। लेकिन महिला अपना पता बदल चुकी थी और उसका स्थानीय वकील भी गुजर चुका था, जिससे रेलवे उससे संपर्क नहीं कर पा रहा था। कई पत्र भेजे गए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। आखिरकार रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि आदेश का पालन करने में उन्हें स्थानीय स्तर पर भारी दिक्कत आ रही है।
सुप्रीम कोर्ट का सक्रिय हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ईस्टर्न रेलवे को अखबारों में पब्लिक नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही नालंदा के एसएसपी और बख्तियारपुर थाने के एसएचओ को महिला का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। अदालत ने कहा कि महिला को उसके अधिकारों की जानकारी दी जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि मुआवज़े की राशि उसे सुरक्षित पहुंच जाए। अदालत ने यह भी कहा कि गरीब व्यक्ति तक राहत पहुंचाना न्यायपालिका का दायित्व है।
रेलवे ने दिखाई तत्परता
काफी खोजबीन के बाद रेलवे और स्थानीय प्रशासन संयोगिता देवी को उनके नए गांव में ढूंढने में सफल हुए। अधिकारियों ने उससे आधार कार्ड, पैन कार्ड और ग्राम पंचायत का सर्टिफिकेट लिया। बैंक विवरण न मिलने पर उसने इन्हें स्पीड पोस्ट से भेजा। इसके बाद 13 नवंबर 2025 को 8,92,953 रुपये उसकी खाते में जमा कर दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और वकील फौजिया शकील की सराहना की, जिन्होंने बिना किसी फीस के महिला की मदद की।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि अदालत का उद्देश्य सिर्फ केस निपटाना नहीं, बल्कि जरूरतमंदों तक राहत पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि एक गरीब महिला के चेहरे पर मुस्कान लाना ही हमारी असली कमाई है। कोर्ट ने माना कि यह मामला इस बात का उदाहरण है कि किस तरह न्यायपालिका, पुलिस और प्रशासन मिलकर किसी पीड़ित को न्याय दिला सकते हैं, चाहे मामला कितना भी पुराना क्यों न हो।
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