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Bangladesh Election Date: बांग्लादेश में पहले आम चुनाव की तारीख का एलान, 12 फरवरी को होगी वोटिंग

बांग्लादेश में 12 फरवरी 2026 को आम चुनाव कराएगा। पिछले साल छात्र आंदोलन से शेख हसीना के हटने के बाद इस दक्षिण एशियाई देश पहला चुनाव होगा। हसीना की पार्टी अवामी लीग देश की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इसे चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है।

बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने गुरुवार को आम चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री पद से शेख हसीना के हटाने के बाद के बाद देश में यह पहला चुनाव हो रहा है। बांग्लादेश में अगले साल 12 फरवरी को वोट डाले जाएंगे।  मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन ने गुरुवार को एलान किया कि बांग्लादेश में अगले साल 12 फरवरी को 13वां संसदीय चुनाव होगा। यह अगस्त 2024 में हिंसक छात्र विरोध प्रदर्शन में प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाए जाने के बाद पहला चुनाव होगा।

विद्रोह के बाद बांग्लादेश का पहला आम चुनाव
बांग्लादेश फरवरी में आम चुनाव कराएगा। यह 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन से शेख हसीना के हटने के बाद इस दक्षिण एशियाई देश पहला चुनाव होगा। हसीना की पार्टी अवामी लीग देश की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन इसे चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है। अब 17.3 करोड़ की आबादी वाला यह मुस्लिम-बहुल देश पूरी तरह बदले हुए राजनीतिक माहौल में मतदान करने जा रहा है। यहां इस पड़ोसी देश के सियासी माहौल पर एक नजर डालते हैं।
बीएनपी सबसे प्रभावी राजनीतिक दल
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) इस चुनावी माहौल में सबसे आगे है। यह दल पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी चुनाव की प्रबल दावेदार मानी जा रही है। अमेरिकी इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट के दिसंबर सर्वे ने अनुमान लगाया कि बीएनपी सबसे ज्यादा सीटें जीत सकती है। 1978 में जिया के दिवंगत पति और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की बनाई बीएनपी, बांग्लादेशी राष्ट्रवाद, आर्थिक उदारीकरण और भ्रष्टाचार-विरोधी सुधारों का समर्थन करती है। खालिदा जिया की खराब सेहत और उनके बेटे व कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान की गैरमौजूदगी इस पार्टी की चुनौतियां हैं। रहमान निर्वासन में लंदन में हैं। हालांकि, उन्होंने चुनाव से पहले लौटने का वादा किया है।

जमात-ए-इस्लामी दोबारा बढ़ता प्रभाव
हसीना सरकार की प्रतिबंधित इस्लामवादी पार्टी जमात-ए-इस्लामी छात्रों के विद्रोह के बाद फिर सक्रिय हो गई है। इसके चुनावों में दूसरे स्थान पर रहने की उम्मीद है। शफीकुर रहमान के नेतृत्व में जमात शरीयत आधारित शासन इस्लामी शासन की वकालत करती है, लेकिन यह अब अपने रूढ़िवादी वोटर आधार से परे अपना समर्थन बढ़ाना चाहती है। यह पार्टी माफिया-मुक्त समाज और सख्त भ्रष्टाचार विरोधी कदमों का वादा करती है। यह 2001–2006 के बीच बीएनपी के साथ सत्ता में रह चुकी है।

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