दीपक शर्मा
नई दिल्ली। दिल्ली के लोग एक बार फिर से प्रदूषण वाली दिवाली मनाने को विवश हैं। बुधवार सुबह दिल्ली-एनसीआर के कुछ इलाकों में एक्यूआई 350 के पार दर्ज किया गया। दिवाली से पहले दिल्ली का ये हाल है तो सोचिए दिवाली के अगले दिन राजधानी में क्या होगा? चूंकि गैस चैंबर तब्दील हो चुकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पटाखों के प्रतिबंध को लागू करवाने के लिए दिल्ली पुलिस व आतिशी की दिल्ली सरकार अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है। इसमें निगरानी बढ़ाने के साथ जागरूकता अभियान पर भी जोर दिए जाने के दावे किये जा रहे है। निगरानी के लिए दिल्ली सरकार व पुलिस की 377 टीमें कार्रवाई में जुटी बताई जा रही हैं। वहीं, जागरूकता के लिए आरडब्ल्यूए, मार्केट एसोसिएशन और धार्मिक समितियों का सहारा लिए जाने की बात कही जा रही है। दिल्ली सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर कोई प्रतिबंधों को तोड़ता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। अभी तक पटाखा बेचने पर 79 मामले दर्ज करने के साथ 19,005 किग्रा पटाखे भी जब्त किए गए हैं।
इससे इतर दिल्ली के बाजारों तथा मोहल्लो की दुकानों पर छोटी-छोटी अवैध रूप से आतिशबाजी बेचने वाले मुख्यमंत्री आतिशी की दिल्ली सरकार की तमाम कवायादो को ठेंगा दिखा रहे है। वहीं रौशनी के पर्व दिवाली पर दिल्ली की आबोहवा बिगाड़ने में योगदान देने वाले आतिशबाज बाज आने का नाम नहीं ले रहे। इनको हवा देने वालों की भी कोई कमी नहीं है। मामला तो तब गंभीर हो जाता है जब प्रदूषण की सहेली आतिशबाजी को धर्म के साथ जोड़ने वाले नामी चेहरे सामने आते है।
इस कड़ी में बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र शास्त्री की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। उनके कहना है कि हम तो दिवाली अच्छे से मनाएंगे और सुतली बम भी फोड़ेंगे। लोग सनातन धर्म के त्यौहार के समय ही बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. देश में बकरीद को लेकर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता। बाबा बागेश्वरधाम ने कहा कि ‘यह देश का दुर्भाग्य है, जब भी सनातन हिंदू त्यौहार की बात आता है, कोई ना कोई कानून के उल्लंघन की बात करता है। रोक लगाता है, रोक लगाने की मांग करता है। कोई इनसे पूछे कि क्या वे दिल्ली की सड़को पर सुबह-शाम की सैर करने के बाद विचार करे कि सरकारी प्रतिबंध से किसी दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं बल्कि ये दिल्ली की जनता के जीवन-मरण का सवाल है। परंतु आमजन को धर्म की अफीम चटाने वालों को इससे क्या लेना-देना। वैसे भी इन दिनों ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नैरेटिव सेट कर दिया गया है।
इस बीच बाबा बागेश्वर के बयान पर मौलाना तौकीर राजा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दिवाली रोशनी का त्यौहार होता है, ना कि पटाखों का। अगर पटाखों से प्रदूषण हो रहा है तो यह खुशी का इजहार नहीं कहलाएगी। मैं यह नहीं कहता कि पटाखों पर बैन लगा दिया जाए, लेकिन इसकी सीमा तय कर दी जाए। उन्होंने आगे कहा कि पहले मुसलमान भी शबे बरात में आतिशबाजी करते थे, लेकिन अब देश के हित के लिए हमारे उलेमा ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी तरह सभी धर्म गुरुओं को समाज हित के बारे में सोचना चाहिए और आगे आना चाहिए।
इस सबसे इतर दिल्ली-एनसीआर में किये गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए 55 फीसदी नागरिकों ने आतिशबाजी प्रतिबंध को सही ठहराते हुए पटाखे न चलने की बात कही से जोकि एक सकारात्मक संकेत है। इसी सर्वेक्षण में 19 फीसदी लोगों ने इच्छा जताई है कि वो पटाखे चलना चाहेंगे, 9 फीसदी लोगों ने कहा कि वो पटाखे फोड़ेंगे और उन्हें ये भी पता है कि वो कहां से पटाखे हासिल कर सकते हैं. जबकि 8 फीसदी लोगों ने इस बारे में कोई साफ जवाब नहीं दिया। यानि कुल मिलाकर करीब 18 फीसदी परिवार इस बार दिवाली पर पटाखे फोड़ने का इरादा रखते है। इसे साफ़ है कि चंद लोग प्रतिबंधों के बावजूद पटाखे फोड़ने को परंपरा का हिस्सा मान ऐसा करने से बाज नहीं आते, तो कुछ बच्चों की जिद्द तो कोई बच्चे के जन्म अथवा विवाह आदि की पहली दिवाली के नाम पर हवा में जहर घोलने से बाज नहीं आते। जबकि सर्वे के मुताबिक, लोगों का भी मानना है कि अगर सही तरीके से प्रतिबंध लागू नहीं किया गया तो हालात और अधिक गंभीर हो सकते हैं।
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