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8th pay commission: सिफारिशों को अंतिम रूप देना नए आयोग के लिए चुनौतीपूर्ण, सरकार की कौन सी शर्त बनी परेशानी?

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) के महासचिव अमरजीत कौर का कहना है कि सरकार द्वारा आठवें वेतन आयोग को दिए गए संदर्भ की शर्तें इतनी कठोर हैं कि वे 8वें सीपीसी पर अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में बहुत सारी मजबूरियां पैदा होंगी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के विचारार्थ विषयों को स्वीकृति दे दी है। आठवें वेतन आयोग में एक अध्यक्ष, एक सदस्य (अंशकालिक) और एक सदस्य-सचिव शामिल होंगे। यह आयोग, अपने गठन की तिथि से 18 महीनों के भीतर अपनी सिफारिशें देगा। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) के महासचिव अमरजीत कौर का कहना है कि सरकार द्वारा आठवें वेतन आयोग को दिए गए संदर्भ की शर्तें इतनी कठोर हैं कि वे 8वें सीपीसी पर अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में बहुत सारी मजबूरियां पैदा होंगी।

इसकी वजह, सरकार द्वारा वेतन आयोग के गठन के लिए जारी लगभग सभी संदर्भ की शर्तें केवल यही कहती हैं कि आठवें केंद्रीय वेतन आयोग को आर्थिक स्थितियों, वित्तीय विवेक, विकासात्मक व्यय एवं कल्याणकारी उपायों के लिए पर्याप्त संसाधन सुनिश्चित करने और सबसे बुरी बात गैर अंशदायी पेंशन योजना की बिना वित्तपोषित लागत के बारे में ध्यान रखना चाहिए।
अमरजीत कौर का कहना है कि ये सभी बातें सरकार के दिमाग में तभी आती हैं, जब कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को कोई लाभ देने की बात आती है। कॉरपोरेट्स द्वारा सार्वजनिक बैंकों से लिए गए लोन पर छूट/राहत देने और उन्हें माफ करने या कॉरपोरेट्स पर टैक्स रेट कम करने आदि के समय मोदी सरकार इन आर्थिक स्थितियों और वित्तीय समझदारी आदि पर कभी विचार नहीं करती है।

आठवें वेतन आयोग, सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदियों के बावजूद, एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में, निष्पक्ष रूप से अध्ययन करने और पांच यूनिट वाले परिवार के लिए जरूरत के हिसाब से न्यूनतम वेतन की सिफारिश करने के लिए बाध्य है, न कि तीन यूनिट वाले परिवार के लिए, यह देखते हुए कि अब माता पिता/वरिष्ठ नागरिक संरक्षण अधिनियम, या माता पिता/वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत वृद्ध माता पिता की देखभाल करना बच्चों की कानूनी जिम्मेदारी है। इसलिए माता पिता, अब परिवार का हिस्सा हैं।

इसके अलावा, आज के जीवन की जरुरतों, सूचना प्रौद्योगिकी पर खर्च, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, आदि पर खर्च को देखते हुए, क्योंकि इन सभी का निजीकरण, वर्तमान सरकार द्वारा किया गया है, आठवें वेतन आयोग को एक न्यूनतम वेतन की सिफारिश करनी चाहिए। यह इसलिए, ताकि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से आने वाले सरकारी कर्मचारी एक सम्मानजनक और गरिमापूर्ण जीवन जी सकें।

एआईटीयूसी के महासचिव के मुताबिक, चिंता की बात यह है कि एक जनवरी 2026 से पहले रिटायर हुए कर्मचारियों की पेंशन में एक जनवरी 2026 से होने वाले रिवीजन के संबंध में, सरकार द्वारा फाइनेंस एक्ट के माध्यम से सीपीसी (पेंशन) नियम, 1972 (अब 2021) में किए गए बदलाव के कारण भविष्य और पिछले पेंशनभोगियों के बीच भेदभाव किया जा रहा है। जैसा, पहले भी हुआ है।

सरकार को विशेष रूप से आठवें वेतन आयोग से एक जनवरी 2026 से सेवारत कर्मचारियों के बराबर पेंशन रिवीजन की सिफारिश करने के लिए कहना चाहिए। इसी तरह, आठवें केंद्रीय वेतन आयोग की यह जिम्मेदारी है कि वह एनपीएस में शामिल, 24 लाख से ज्यादा केंद्र सरकार के कर्मचारियों की इस जायज मांग पर विचार करे कि उन्हें एक जनवरी 2026 से नॉन कंट्रीब्यूटरी पुरानी पेंशन योजना में शामिल किया जाए।

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