करीब पांच दशक से हिंदी सिनेमा का हिस्सा रहे राकेश बेदी आज भी अपनी एक्टिंग, सोच और साफ बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। इस बार वो आदित्य धर की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘धुरंधर’ में एक बिल्कुल अलग और इंटेंस अवतार में नजर आने वाले हैं। अमर उजाला से खास बातचीत में राकेश बेदी ने फिल्म से अपने जुड़ाव पर खुलकर बात की। उन्होंने रणवीर सिंह, अर्जुन रामपाल और संजय दत्त के साथ काम करने के अपने अनुभव भी साझा किए। इसके साथ ही उन्होंने आज के स्टारडम कल्चर और सोशल मीडिया फॉलोअर्स की सच्चाई पर भी अपनी बेबाक राय रखी। बातचीत में दिवंगत धर्मेंद्र जी से जुड़ी यादें भी सामने आईं।
‘धुरंधर’ से आपका जुड़ाव कैसे हुआ?
इस फिल्म का सफर मेरी जिंदगी में बहुत दिलचस्प तरीके से शुरू हुआ। आदित्य धर ने पहले ‘उरी द सर्जिकल’ स्ट्राइक बनाई थी, जिसमें मेरा सिर्फ एक छोटा सा सीन था। उस सीन के लिए मुझे चार दिन सर्बिया में शूट करना था। आना जाना और वहां रुकना मिलाकर लगभग ग्यारह दिन का कमिटमेंट था। पहले तो मेरा मन नहीं था क्योंकि रोल बहुत छोटा था। मैंने पूछा कि क्या वाकई सिर्फ एक ही सीन है। तब आदित्य ने कहा कि सर जब भी मैं स्क्रिप्ट खोलता हूं, इस सीन में मुझे सिर्फ आप ही नजर आते हैं। मुझे लगा कि जब कोई डायरेक्टर इतनी शिद्दत से कह रहा है, तो उसका सम्मान करना चाहिए। मैंने वह सीन किया। आज भी मुझे याद है कि उस दिन पूरा दिन सीन के लिए रखा गया था। हमने ढाई बजे शूट शुरू किया और साढ़े छह बजे तक सीन खत्म हो गया। पैकअप के बाद आदित्य ने बहुत खुश होकर कहा कि सर मुझे बहुत मजा आया और मैं इसका बदला आपको जरूर वापस करूंगा। फिर पिछले साल मार्च में अचानक उनका फोन आया और वही फिल्म आज धुरंधर है।
इस फिल्म की स्टार कास्ट को लेकर आपका क्या कहना है?
इस फिल्म का नाम ही धुरंधर है और इसकी स्टार कास्ट भी बिल्कुल उसी नाम की तरह दमदार है। चाहे रणवीर सिंह हों, अर्जुन रामपाल हों या फिर राकेश बेदी यानी मैं खुद। मुझे लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में ऐसी मजबूत एन्सेंबल स्टार कास्ट हिंदी सिनेमा में देखने को नहीं मिली है।
शूटिंग के दौरान कोई ऐसा खास पल जो हमेशा याद रहेगा?
अगर फिल्म के अनुभव की बात करूं तो एक नहीं बल्कि कई मोमेंट हैं जो हमेशा याद रहेंगे। आदित्य शुरू में थोड़ा रिलक्टेंट थे कि इस इंटेंस फिल्म में ज्यादा ह्यूमर न डाला जाए। मैंने उनसे कहा कि फिल्म बहुत इंटेंस है लेकिन कुछ जगहों पर हल्का सा ह्यूमर काम करेगा। मेरा खुद का रोल भी काफी मेनेसिंग है। यह कोई कॉमेडी रोल नहीं है। यह एक वायलेंट किरदार है लेकिन मैं खुद हाथ से नहीं मारता। मैं फोन पर बैठकर प्लान करता हूं कि किसे खत्म करना है। एक सीन में हम किसी एक इंसान की जिंदगी का ऐसा इंतजाम कर देते हैं कि उसका काम पूरी तरह खत्म हो जाता है। लेकिन उसे एहसास भी नहीं होता कि उसके साथ कुछ गलत हो रहा है। मैंने कुछ हाथों से एक्शन किए जिसे देखकर आदित्य थोड़ा घबरा गए। मैंने उन्हें बताया कि मेरा थिएटर का बहुत अनुभव है और मैंने ऐसा सीन एक नाटक में भी किया था जहां एक हजार लोग खड़े होकर तालियां बजा रहे थे। थिएटर ने मुझे हर सीन को गहराई से समझना और निभाना सिखाया है।
जब आपने पहली बार स्क्रिप्ट सुनी तो आपका पहला रिएक्शन क्या था?
जब मैंने पहली बार स्क्रिप्ट सुनी तो मेरा ध्यान अपने रोल से ज़्यादा पूरी कहानी पर था। मुझे सबसे पहले यह लगा कि स्क्रिप्ट कितनी पावरफुल है और उसमें कोई डल मोमेंट नहीं है। शुरुआत में लगता है कि कहानी कहीं भटक रही है, लेकिन धीरे धीरे समझ में आता है कि यह एक सिंगल ट्रैक पर चलने वाली फिल्म है, जहां एक आदमी एक मिशन पर निकलता है और रास्ते में अलग अलग किरदार उससे जुड़ते जाते हैं। मुझे यह एक बेहद इंटेंस, टेंशन से भरी और साथ ही बहुत ग्रिपिंग फिल्म लगी। स्क्रिप्ट को बार बार पढ़ते हुए मेरे मन में यह सवाल आया कि मैं इसमें कहां फिट बैठता हूं और इस कहानी में क्या योगदान दे रहा हूं। हर एक्टर की तरह मैं भी यही चाहता था कि मैं कहानी का ऐसा हिस्सा बनूं जिससे कहानी एक कदम आगे बढ़े। जब मैंने स्क्रिप्ट को और गहराई से पढ़ा तो मुझे टेंशन के साथ कुछ लाइटर मोमेंट्स की गुंजाइश भी नजर आई। एक पल के लिए लगा कि शायद मैं जो सोच रहा हूं वो गलत हो सकता है, लेकिन आदित्य ने खुद आकर मुझसे कहा कि सर आप जो कर रहे हैं, वही रखिए।
क्या यह फिल्म किसी की बायोपिक है?
बिल्कुल नहीं। यह किसी एक व्यक्ति की जिंदगी पर आधारित नहीं है। यह फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित जरूर है लेकिन किसी एक घटना से नहीं। इसमें पचास से सौ अलग अलग सच्ची घटनाओं को चुनकर एक कहानी बनाई गई है। यह कई जासूसों की दुनिया से इंस्पायर्ड है और आप कभी यह नहीं जान पाएंगे कि यह किसकी कहानी है क्योंकि स्पाई की जिंदगी कभी रिवील नहीं की जाती।
रणवीर सिंह के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
पिछले दस पंद्रह वर्षों में हमारे देश में जो लीडिंग एक्टर्स की नई पीढ़ी आई है, उनमें रणवीर सिंह सबसे ज्यादा एनर्जेटिक और सबसे ज्यादा इन्वॉल्व रहने वाले कलाकार हैं। वह कभी सेल्फिश हीरो नहीं रहे। वह इस सोच में नहीं रहते कि यह सीन सिर्फ मेरा है और मुझे ही इसे चमकाना है। वह चाहते हैं कि जो लिखा गया है, उसे पूरी ईमानदारी और उतनी ही इंटेंसिटी से पर्दे पर उतारा जाए।
कई बार मैंने देखा कि रणवीर का पैकअप हो चुका होता था, लेकिन फिर भी वह सेट से सीधे घर नहीं जाते थे। वह चुपचाप प्रोडक्शन और डायरेक्शन टीम की मदद करने लग जाते थे। वह सिर्फ अपने किरदार में ही नहीं, बल्कि पूरी फिल्म की प्रक्रिया में पूरी तरह इन्वॉल्व रहते थे।
रणवीर को लेकर कोई ऐसा पल जो आपको खास लगा?
रणवीर को लेकर एक बात जो मेरे लिए बिल्कुल नई और सरप्राइजिंग थी, वह मैं जरूर शेयर करना चाहता हूं। जब हमारी फिल्म का आखिरी दिन था और शूट खत्म हो रहा था, रणवीर ने माइक लिया और सबके सामने कहा कि अगर यह फिल्म हजार करोड़ का बिजनेस करेगी, तो उसमें पांच सौ करोड़ का योगदान अकेले राकेश बेदी का होगा। उन्होंने यह बात बहुत प्यार और सम्मान के साथ कही थी, लेकिन मैं तुरंत बोल पड़ा कि भाई इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर मत डालो।
अर्जुन रामपाल के साथ आपकी बॉन्डिंग कैसी रही?
आर. मधुवन के साथ मैंने कभी पहले काम नहीं किया था और इस फिल्म में भी मेरा उनके साथ कोई सीधा सीन नहीं है। लेकिन अर्जुन रामपाल के साथ मेरा बहुत पुराना रिश्ता है। शुरुआत से लेकर अब तक यह मेरे साथ उनकी लगभग पांचवीं फिल्म है। हमारी बहुत पुरानी दोस्ती है। संजय दत्त के साथ भी मैंने पहले काफी काम किया है। जब हम इस फिल्म में फिर से मिले तो ऐसा लगा जैसे पुराने दोस्त दोबारा मिल गए हों। पुरानी बातें याद आने लगीं और वही अपनापन फिर से लौट आया। इतने वर्षों बाद जब मैं संजय से मिला तो मैंने उनमें बड़ा बदलाव महसूस किया। उनमें अब बहुत ठहराव आ गया है। वह जिंदगी को लेकर ज्यादा फिलॉसॉफिकल हो गए हैं। मैंने उनमें एक नई तरह की गंभीरता और संयम देखा। वह अब पहले से ज्यादा डिसिप्लिन्ड हो गए हैं और उनकी विनम्रता की तो कोई सीमा ही नहीं है। मुझे लगता है यह सब उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है। उनके पिता हर इंसान से बहुत प्यार करते थे। मैं उन्हें भी बहुत अच्छे से जानता था। वही संस्कार संजय में भी साफ दिखाई देते हैं। उनके साथ काम करना हमेशा बहुत अच्छा अनुभव रहा है।
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