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दिल्ली में बढ़ती कबूतरों की संख्या पड़ न जाए सेहत पर भारी, दाना डालने वालों पर शिकंजा कसने की तैयारी

देश की राजधानी दिल्ली में कबूतरों की बढ़ती संख्या अब एक गंभीर स्वास्थ्य और स्वच्छता समस्या का रूप लेती जा रही है।

पंक्षियों को दाना-पानी देना जहां पुण्य का कार्य माना जाता है, वहीं देश की राजधानी दिल्ली में कबूतरों की बढ़ती संख्या अब एक गंभीर स्वास्थ्य और स्वच्छता समस्या का रूप लेती जा रही है। आसमान में उड़ते ये पंक्षी जहां एक तरफ प्रकृति की खूबसूरत तस्वीर बनाते हैं, वहीं जमीन पर अपने मल और फैले दानों से गंदगी और बीमारियों को न्योता देते हैं। कबूतरों की बढ़ती संख्या न सिर्फ अस्वच्छता का सबब बन रही है बल्कि कई बीमारियों का कारण भी बन रही है। जगह-जगह जाम की समस्या उत्पन्न हो रही है, साथ ही शहर के प्रमुख चौराहों की खूबसूरती, बदसूरती में तब्दील होती जा रही है।

13 वर्षीय छात्र दाखिल की याचिका
इस मुद्दे को हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून (एनजीटी) ने गंभीरता से लिया है, जब एक 13 वर्षीय छात्र अरमान पालीवाल ने अपनी याचिका में कबूतरों से फैल रही अस्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का जिक्र किया। यहां तक कि एनजीटी ने याचिका के आधार पर दिल्ली सरकार से जवाब मांगते हुए एमसीडी और डीडीयू को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि फुटपाथों पर कबूतरों को दाना खिलाने के कारण गंदगी फैल रही है और कबूतरों के बीट (मल) से स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसके अलावा कबूतरों की संख्या में इजाफा भी हुआ है। याचिका कर्ता ने बताया कि कबूतरों के मल से हवाएं दूषित हो रही हैं। साथ ही हवाओं में कबूतरों की बीट मिलकर सांसों के जरिए फेफड़ों तक पहुंच रही है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
तालकटोरा: मुख्य गोलचक्कर पर कबूतरों का जमावड़ा
राजधानी के तीन से चार प्रमुख स्थलों का निरीक्षण किया गया, जिनमें तालकटोरा मुख्य रूप से सामने आया। तालकटोरा के मुख्य गोलचक्कर पर प्रतिदिन भारी संख्या में कबूतर इकट्ठा होते हैं, जहां स्थानीय लोग और राहगीर उन्हें दाना खिलाते हैं। यहां कबूतरों के लिए विशेष रूप से बने चबूतरे पर दाना बिखेरा जाता है, जिससे आसपास की सड़कों पर कबूतरों की भारी भीड़ रहती है। सड़क के पास से गुजरते कार चालक रणधीर ने बताया कि अचानक से सैंकड़ों की संख्या में कबूतरों के उड़ने से दुर्घटना की भी स्थिति बन जाती है। ये कबूतर अचानक से झुंड में गाड़ी के शीशे के सामने आ जाते हैं, जिससे आगे का दृश्य ब्लॉक हो जाता है और सामने से आ रही गाड़ी नहीं दिखती है।

इसके अलावा दिल्ली के गीता कॉलोनी में भारी संख्या में कबूतरों को दाना देते लोगों को देखा जा सकता है। यहां सैंकड़ों की संख्या में कबूतर एक साथ दाना चुगते हैं। लेकिन कबूतरों के इस जमावड़े ने जाम की स्थिति को उत्पन्न कर दिया है। यहां आए-दिन जाम की समस्या बनी रहती है। साथ ही कबूतरों के बिखरे दाने गंदगी का सबब भी बनते जा रहे हैं। वहीं शांति चौक में भी कबूतरों का एक स्थाई पता देखा गया। चौक की सुंदरता, कबूतरों के बिखरे दाने और मल से प्रभावित हो रही है। यही हाल दिल्ली के पटपड़गंज का है जहां कबूतरों की बढ़ती संख्या से उत्पन्न परेशानियों से आस-पास के लोगों को रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है।

स्वास्थ्य और सफाई पर प्रभाव
कबूतरों के मल से न केवल गंदगी फैलती है, बल्कि इससे एलर्जी, फेफड़ों के संक्रमण और अन्य सांस संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। कबूतरों के मल में पाए जाने वाले फंगस के कण हवा में मिलकर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं। खासतौर पर बुजुर्ग और बच्चों को इससे अधिक खतरा है। हाल ही में एक व्यक्ति के फेफड़े में ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी पाई गई। डॉक्टर के मुताबिक यह बीमारी कबूतर की बीट को सांस के जरिए अंदर लेने की वजह से हुआ था। इसे स्थिति को कबूतर ब्रीड्स फेफड़ा कहते हैं।

फुटपाथों पर दाना डालने वालों पर जुर्माने की तैयारी
एनजीटी की सुनवाई में यह भी प्रस्तावित किया गया है कि फुटपाथों और सार्वजनिक स्थलों पर दाना डालने की गतिविधियों को नियंत्रित किया जाए। याचिकाकर्ता असमान का कहना है कि कबूतरों की अधिकता का कारण सिर्फ उनकी संख्या नहीं, बल्कि उन्हें नियमित रूप से दाना खिलाया जाना है। उन्होंने सुझाव दिया है कि इन गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए जुर्माना लगाया जाए।

कबूतरों से कई तरह की बीमारियां फैलती हैं। जिनमें से कुछ मनुष्यों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। कबूतरों की बीट (मल) से हिस्टोप्लाजमोसिस, क्रिप्टोकॉकोसिस, और सिटाकोसिस जैसी बीमारियों का खतरा होता है। इसके अलावा कबूतर कुछ जीवाणुओं और वायरस को भी फैला सकते हैं, जिसमें साल्मोनेला. ई.कोलाई और वेस्ट नाइल वायरस शामिल है।
-डॉ हरअवतार सिंह, चैरिटी बर्ड्स हॉस्पिटल, चांदनी चौक, नई दिल्ली

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