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अतिक्रमण हटाने की अनुमति : दिल्ली की श्रम विहार कॉलोनी पर चलेगा बुलडोजर, हाईकोर्ट ने दी मंजूरी

अदालत ने काॅलोनी के 14 निवासियों की याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और अन्य सरकारी निकायों के खिलाफ यमुना नदी के तट पर स्थित अपनी कॉलोनी में तोड़फोड़ रोकने और अवैध बेदखली से सुरक्षा की मांग की थी।

हाईकोर्ट ने अबुल फजल एन्क्लेव के श्रम विहार इलाके में अतिक्रमण हटाने की अनुमति दे दी है। अदालत ने काॅलोनी के 14 निवासियों की याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और अन्य सरकारी निकायों के खिलाफ यमुना नदी के तट पर स्थित अपनी कॉलोनी में तोड़फोड़ रोकने और अवैध बेदखली से सुरक्षा की मांग की थी। न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने याचिका को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए प्रत्येक याचिकाकर्ता पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास जमीन पर स्वामित्व का कोई वैध प्रमाण नहीं है। याचिकाकर्ताओं की कॉलोनी जोन ओ में है। इसलिए पीएम-उदय योजना के तहत नियमितीकरण के लिए पात्र नहीं है। कोर्ट ने एनजीटी के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बहाल करने के लिए सभी अतिक्रमणों को हटाना आवश्यक है। कोर्ट ने वर्ष 2024 की याचिका का हवाला देते हुए कहा कि उस समय की याचिका और वर्तमान याचिका में एक ही घर के दो सदस्य शामिल है। जो याचिका की मंशा पर सवाल खड़े करते हैं। यह कानूनी कार्यों में अड़ंगा लगाने जैसा है।

याचिकाकर्ताओं ने किया वैधता का दावा : याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे खसरा नंबर 482 और 483 पर स्थित अपनी जमीन पर वैध रूप से काबिज हैं, जो अब श्रम विहार, अबुल फजल एन्क्लेव के नाम से जानी जाती है। उनके पास बिजली बिल, हाउस टैक्स रसीदें और अनरजिस्टर्ड सामान्य शक्ति पत्र (जीपीए), बिक्री समझौते, शपथ पत्र, वसीयत और कब्जा पत्र जैसे दस्तावेज हैं, जो 1996 से 2019 के बीच पूर्व मालिकों द्वारा उनके पक्ष में निष्पादित किए गए थे। यह जमीन 1989 में यमुना नदी के चैनलाइजेशन के लिए दिल्ली के नियोजित विकास के लिए आवंटित की गई थी। उन्होंने दावा किया कि उनकी कॉलोनी दिल्ली सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों की सूची में सूचीबद्ध है। काॅलोनी पीएम-उदय योजना के तहत नियमितीकरण के लिए पात्र हैं।

मास्टर प्लान 21 में जोन ओ में शामिल है इलाका
डीडीए ने तर्क दिया कि यह कॉलोनी मास्टर प्लान फॉर दिल्ली-2021 के तहत जोन ओ में आती है, जो यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, जोन ओ में सभी अतिक्रमणों को तत्काल हटाना आवश्यक है। डीडीए ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की कॉलोनी 1,731 मान्यता प्राप्त अनधिकृत कॉलोनियों की सूची में शामिल नहीं है। नियमों के अनुसार जोन ओ में आने वाली कॉलोनियों को इस योजना के तहत कोई अधिकार या लाभ नहीं दिया जा सकता।

कपड़े लगा कर बनाए हैं अस्थाई शौचालय, यमुना में जा रही गंदगी
कॉलोनी में झुग्गी और पक्के मकान दोनो हैं। झुग्गियों में रहने वालों ने कपड़े लगाकर एक दर्जन से ज्यादा अस्थाई शौचालय बना लिए हैं। इसकी गंदगी सीधे नाले के जरिए आगरा कैनाल में जा रही है। इस दौरान पूरे इलाके में गंदगी फैली हुई दिखाई देती है। वहीं पूरी कॉलोनी में कोई सड़क नहीं है। कई स्थानों पर बांस के खंभों से बिजली के तार गुजारे गए हैं।

यहां से शुरू हुआ विवाद  
यह जमीन 2012 में डीडीए द्वारा दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) को कालिंदी कुंज मेट्रो डिपो के निर्माण के लिए हस्तांतरित की गई थी। डीएमआरसी ने दावा किया कि अवैध अतिक्रमण के चलते वह इस जमीन इस्तेमाल नहीं कर पा रहा। 18 सितंबर 2024 को डीएमआरसी ने उपायुक्त को एक नोटिस जारी कर तोड़फोड़ के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने इस कार्रवाई को रोकने के लिए अंतरिम राहत की मांग की थी, जिसे अदालत ने अंतिम फैसले में खारिज कर दिया।

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