नवीन गौतम, नई दिल्ली।
दिल्ली में भाजपा की सरकार एक्शन मोड में है, प्राथमिकताएं तय कर दी गई हैं। जो प्राथमिकताएं तय की गई है उन पर तो काम होना ही चाहिए मगर जरूरी यह भी है जो विभाग लंबे समय से निष्क्रिय हैं उन्हें सक्रिय किया जाए। ऐसे ही दिल्ली सरकार के दो विभाग हैं जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है लेकिन उतने सक्रिय भी नहीं जितने उनकी आवश्यकता है, अगर यह कहा जाए कि यह निष्क्रिय हैं तो यह गलत नहीं है क्योंकि इन विभागों के बारे में दिल्ली के अधिकांश लोग तक नहीं जानते। इन विभागों को सक्रिय करने के लिए दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति के पूर्व उपाध्यक्ष विजेन्द्र यादव में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को पत्र लिखा है।
पहला विभाग है मध निषेध निदेशालय और दूसरा है खाद्य अपमिश्रण निवारण विभाग। दोनों ही जनता के स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं। इन दोनों की उतनी सक्रियता नहीं है जितनी होनी चाहिए। अगर इन दोनों विभागों को सक्रिय कर दिया जाए तो दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उतना बजट रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी जितना रखा जाता है, लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा और जितनी तेजी के साथ बीमारियां बढ़ रही है उन पर भी अंकुश लगेगा।
मध निषेध निदेशालय की बात करें तो इसकी जिम्मेवारी नशाखोरी को रोकने की है। पिछले कुछ वर्षों और मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो दिल्ली में बड़े पैमाने पर नशे का चलन बढा है खास तौर से किशोर और नौजवान पीढ़ी के बीच आज झुग्गी बस्ती से लेकर मध्यम वर्गीय इलाकों, ग्रामीण इलाके से लेकर शहरी क्षेत्र तक का युवा नशे की चपेट में है । सवाल बड़ा है कि आखिर नशा आता कहां से है ? निश्चित तौर पर इसे रोकने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है खास तौर से प्रत्येक थाना अध्यक्ष और बीट कांस्टेबल की जिन्हें मालूम होता है कि नशा कहां से आ रहा है, अगर उन्हें नहीं मालूम और वह कार्यवाई नहीं करते तो उन्हें तत्काल उनके पदों से हटा देना चाहिए। लेकिन इसके बीच जिम्मेदारी मध निषेध निदेशालय की भी है । विभाग दिल्ली में कार्यरत तो है लेकिन जिस तरह से इसकी कार्य शैली है उसको देखकर लगता है कि यह केवल औपचारिकता वश विभाग बनाया हुआ है अगर ईमानदारी के साथ इस विभाग को सक्रिय किया जाए तो नशे के चलन को दिल्ली पुलिस और विभाग मिलकर आसानी से रोक सकते हैं। यह ठीक है कि राजस्व में बहुत बड़ा योगदान शराब की बिक्री से आता है लेकिन नैतिक जिम्मेदारी भी है कि नशे के कारण हो रहे सामाजिक पतन को प्राथमिकता के आधार पर रोका जाए, यह तभी संभव है जब नशे के सामान की आवक बंद होगी।
दूसरा एक अन्य महत्वपूर्ण विभाग है खाद्य अप मिश्रण निवारण विभाग जो दिल्ली के संदर्भ में सफेद हाथी ही साबित हुआ है।
जितनी तेजी के साथ मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री बढ़ी है उतनी ही इस विभाग की सक्रियता भी कम हुई है, कारण जो भी हो लेकिन सैंपल लेने और फिर उनकी रिपोर्ट आने तक में सालों साल गुजर जाते हैं। यहां तक कि कई अधिकारी मिलावट खोरी से साथ सांठ-गांठ रखते हैं जिसके चलते मिलावटखोरों का मनोबल बड़ा रहता है और वह जमकर खाद्य पदार्थों में मिलावट कर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं। स्वास्थ्य आंकड़ों पर ही नजर डाली जाए तो दिल्ली में लिवर व किडनी फेलियर, हार्ट अटैक, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के कारण मौत का आंकड़ा बड़ा है और इन सब का बहुत बड़ा कारण खाद्य पदार्थों में मिलावट और नशे का बढ़ता चलन है। देखने वाली बात यह होगी कि 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापस लौटी भारतीय जनता पार्टी इन विभागों को कितना तबज्जो देती है या फिर पुरानी परंपरागत परिपाटी पर ही चलते हुए इन विभागों को निष्क्रिय रख जनता को भगवान भरोसे छोड़ देती है।
No Comments: