नवीन गौतम
दिल्ली सरकार के नए पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने 31 मार्च के बाद 15 साल पुराने वाहनों को पेट्रोल न दिए जाने का ऐलान किया तो तमाम चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
इस ऐलान ने वाहन मालिकों के बीच हड़कंप मचा दिया। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या सच में ऐसा कोई सीधा प्रतिबंध है, या फिर यह खबर सिर्फ आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित है?
हमारे पास दिल्ली परिवहन विभाग द्वारा जारी की गई एक आधिकारिक अधिसूचना है (DC/Scrapping/TPT/2024/12278, दिनांक 20 फरवरी 2024) जो इस पूरे मामले पर स्पष्टता लाती है। इस नोटिफिकेशन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने WP (C) 13029/1985 – एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ में 29 अक्टूबर 2018 को एक आदेश दिया था, जिसमें यह कहा गया कि 10 साल से पुराने डीज़ल वाहन और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन दिल्ली में न चलें लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण पहलू छुपा दिया जाता है। यह प्रतिबंध सिर्फ वाहन रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण पर लागू होता है, न कि वाहन को सड़क पर चलाने पर।दूसरा सवाल यह है कि क्या NGT और सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से ‘चलने पर पाबंदी’ लगाई है?
कई मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी अधिकारियों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि 15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीज़ल वाहनों को पूरी तरह से दिल्ली/NCR में चलाने से रोका गया है। लेकिन जब एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को गहराई से खंगाला, तो पाया कि इसमें “सड़क पर नहीं चलने” जैसी कोई स्पष्ट रोक नहीं लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश ने सिर्फ इतना कहा था कि रजिस्ट्रेशन को 10 साल (डीज़ल) और 15 साल (पेट्रोल) से ज्यादा एक्सटेंड नहीं किया जाएगा। लेकिन यह किसी भी प्रकार से वाहनों को सड़क पर चलाने से सीधा प्रतिबंध लगाने का आदेश नहीं है। एक अन्य सवाल क्या CNG और पेट्रोल वाहनों के लिए भी प्रतिबंध है?
एक और बड़ा झूठ जो फैलाया जा रहा है, वह यह है कि पेट्रोल और CNG वाहनों को भी दिल्ली/NCR में 15 साल बाद नहीं चलने दिया जाएगा। लेकिन किसी भी आदेश में ऐसा कोई ज़िक्र नहीं मिलता कि CNG वाहन, जो 95 प्रतिशत तक क्लीन फ्यूल के रूप में इस्तेमाल होते हैं, उन्हें भी सड़कों से हटाने की बात की गई हो।
इसके अलावा, किसी भी अदालत ने वाहनों की स्क्रैपिंग (कबाड़ में देने) के लिए कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं बनाई है। यानी कि अगर आपका वाहन अच्छी स्थिति में है, प्रदूषण प्रमाणपत्र (PUC) ले रहा है और तकनीकी रूप से फिट है, तो उसे जबरन स्क्रैप करवाने की कोई बाध्यता नहीं है।
इन तमाम चर्चाओं के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठ रहा है
क्या यह पूरा मामला वाहन निर्माताओं को फायदा पहुंचाने की साज़िश है? अब सवाल उठता है कि अगर अदालत ने वाहनों की स्क्रैपिंग का कोई आदेश नहीं दिया, तो सरकार क्यों पुराने वाहनों को हटाने की ज़िद पर अड़ी हुई है? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरा मामला कार कंपनियों को फायदा पहुंचाने की एक चाल हो सकता है। जब सरकार बिना किसी ठोस वैज्ञानिक आधार के पुराने वाहनों को हटाने की बात करती है, तो इसका सीधा लाभ नई कारों की बिक्री को मिलता है।
इन वाहनों को हटाने या उन्हें पेट्रोल ना देने की मूल वजह प्रदूषण बताई जाती है जब के हकीकत में प्रदूषण का असली कारण वाहन नहीं सड़क की धूल है। दिल्ली-NCR में बढ़ते प्रदूषण का ठीकरा सिर्फ वाहनों पर फोड़ना कितना सही है।
कोई भी IIT या किसी वैज्ञानिक संस्थान ने यह प्रमाणित नहीं किया है कि पुराने वाहन PM 2.5 या PM10 प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। बल्कि, रिपोर्ट बताती हैं कि सड़कों की धूल, निर्माण कार्यों से उड़ने वाले कण का प्रदूषण में बड़ा योगदान देती हैं। अगर सरकार सिर्फ सड़कों को धूलमुक्त बनाने पर ध्यान दे, तो प्रदूषण में बड़ा अंतर आ सकता है, बिना पुराने वाहनों को हटाने की जरूरत के। अगर सरकार जल्द ही इस मामले पर स्पष्ट नीति नहीं लाती, तो यह मामला अदालत तक भी जा सकता है। कई वाहन मालिकों ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
क्या सरकार अपने फैसले की सही व्याख्या करेगी? या फिर यह फैसला वाहन निर्माताओं को फायदा पहुंचाने का एक और जरिया बन जाएगा? इस पर भी सरकार को स्थिति साफ करनी होगी । सरकार कोई भी फैसला जल्दबाजी में ना करे तमाम पहलुओं पर नजर रखते हुए उसका गंभीरता से अध्ययन करे जिससे सरकार की बदनामी भी ना हो और लोगों को परेशानी भी उसे बचाया जा सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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