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बुरे दिन : आप की नीति और निर्णयों से नाराज होकर 38 पार्षद छोड़ चुके हैं पार्टी, भारी पड़ रही है भाजपा से जंग

वर्ष 2022 में चुनाव जीतकर एमसीडी की सत्ता पर काबिज हुई आप ने पहले सत्ता में रही कांग्रेस व भाजपा की तरह सत्ता के विकेंद्रीयकरण के बजाय उसे केंद्रीकृत करने की नीति अपनाई।

एमसीडी की कमान संभालने के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) की रणनीतिक चूक अब उसके लिए भारी पड़ रही है। वर्ष 2022 में चुनाव जीतकर एमसीडी की सत्ता पर काबिज हुई आप ने पहले सत्ता में रही कांग्रेस व भाजपा की तरह सत्ता के विकेंद्रीयकरण के बजाय उसे केंद्रीकृत करने की नीति अपनाई।

इससे पार्टी के भीतर ही असंतोष पैदा हुआ और उसके सत्ता से बाहर होने के बाद भी पार्षदों की नाराजगी खत्म नहीं हुई। खासकर वर्ष 2023 में वार्ड समितियों, तदर्थ समितियों और विशेष समितियों के गठन के लिए चुनाव न कराने के कारण आप के कई पार्षदों में नाराजगी घर कर गई। इसका परिणाम यह हुआ कि ढाई वर्षों के भीतर पार्टी के 38 पार्षदों ने पार्टी छोड़ दी।
वर्ष 2023 में भाजपा के लगभग 20 पार्षद आम आदमी पार्टी के संपर्क में थे और वे पाला बदलने के लिए तैयार थे। इन पार्षदों ने आप नेतृत्व से संपर्क भी साधा था, लेकिन आप ने उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं दिया। कहा जा रहा है कि यदि उस समय आम आदमी पार्टी इन पार्षदों को अपने साथ जोड़ लेती तो 12 में से अधिकांश वार्ड समितियों पर उसका नियंत्रण हो सकता था।

आम आदमी पार्टी ने मेयर पद के जरिए पूरी एमसीडी पर नियंत्रण बनाए रखा और नेता सदन को कोई विशेष अधिकार नहीं दिए गए। एमसीडी के भीतर होने वाले अधिकांश निर्णयों में पार्टी मुख्यालय का सीधा हस्तक्षेप बना रहा। नतीजा यह हुआ कि निचले स्तर पर चुने गए पार्षदों को निर्णय प्रक्रिया में खुद को हाशिए पर महसूस होने लगा।

स्थानीय मुद्दों पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता के अभाव और निरंतर हो रहे राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण आम आदमी पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ता गया। इसका परिणाम यह हुआ कि ढाई वर्षों के भीतर पार्टी के 38 पार्षदों ने पार्टी छोड़ दी। इनमें से अधिकतर ने भाजपा का दामन थाम लिया, जबकि अब 15 पार्षदों ने अपनी अलग पार्टी बना ली। इतना ही नहीं, आप एमसीडी की सत्ता से बाहर हो गई और सदन के साथ-साथ वार्ड समितियों में भी भाजपा पार्षदों का दबदबा बढ़ गया है।

सत्ता का विकेंद्रीकरण होने पर पार्षदों को जिम्मेदारी और पहचान मिलती
आप पार्षदों के एक गुट का कहना है कि यदि पार्टी ने सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हुए वार्ड स्तर पर समितियों के चुनाव समय पर करवा दिए होते तो पार्षदों को जिम्मेदारी और पहचान मिलती। इससे पार्टी के भीतर संगठनात्मक मजबूती आती और सत्ता पर पकड़ भी कायम रहती।

पार्षदों को 39 समितियों में करीब 100 पद प्राप्त हो सकते थे। अब जबकि एमसीडी में सत्ता की कमान फिर से भाजपा के हाथों में आ गई है और आप का संगठनात्मक ढांचा बिखरता नजर आ रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की अनदेखी करना आम आदमी पार्टी को काफी महंगा पड़ा है।

आप की मुश्किलें बढ़ीं, रोहिणी, दक्षिणी व पश्चिमी जोन में बहुमत पर संकट
आम आदमी पार्टी के 15 पार्षदों के अलग होकर नई पार्टी बनाने से उसको रोहिणी व दक्षिणी जोन में गहरा झटका लगा है। इन दोनों जोन में उसका बहुमत नहीं रहा है, वहीं पश्चिमी जोन में वह बहुमत के मामले में लक्ष्मण रेखा पर पहुंच गई है।

रोहिणी जोन में आप के एक बागी पार्षद और कांग्रेस के दो पार्षदों के हाथ में सत्ता की चाबी आ गई है। इस जोन में आप पहले व भाजपा दूसरे स्थान पर है। वहीं, दक्षिणी जोन में भी आप ने बहुमत खो दिया है। यहां उसके पास केवल 10 पार्षद रह गए हैं, जबकि भाजपा व अन्य दलों के पार्षदों की संख्या भी 10 हो गई है। बराबरी की यह स्थिति वार्ड समिति के चुनाव को जटिल बना सकती है। इस जोन की वार्ड समिति के चुनाव में भी आप को क्रॉस वोटिंग का सामना करना पड़ा था। इससे स्पष्ट है कि यहां पार्टी की पकड़ कमजोर हो चुकी है।

पश्चिमी जोन में भी आप की स्थिति डगमगाती नजर आ रही है। यहां पार्टी के पास बहुमत का आंकड़ा तो है, लेकिन महज एक पार्षद की बढ़त है। ऐसे में यदि एक भी पार्षद पाला बदलता है, तो आप बहुमत से बाहर हो जाएगी और यहां भी बागी पार्षदों की भूमिका अहम हो जाएगी।

उधर, सिविल लाइन जोन में भाजपा ने मजबूती हासिल कर ली है। यहां अब भाजपा के पार्षदों की संख्या आप से दो अधिक हो गई है। एमसीडी चुनाव के बाद कुल 12 जोन में से आठ जोन में आप और चार में भाजपा का बहुमत था। लेकिन केंद्र सरकार की सिफारिश पर उपराज्यपाल की ओर से 10 पार्षदों के मनोनयन और आप के कुछ पार्षदों के पार्टी बदलने से समीकरण बदल गए।

इसका परिणाम यह रहा कि आप केवल पांच जोन में बहुमत पर टिक सकी और भाजपा को सात जोन में बहुमत मिल गया। मौजूदा हालात में आप के पास सिर्फ तीन जोन में बहुमत बचा है। इनमें पश्चिमी जोन भी शामिल है, जहां उसकी बढ़त केवल एक पार्षद की है।

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