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उम्मीद : रीढ़ की हड्डी में चोट से आई दिव्यांगता हो सकती है दूर… बदल जाएगी जिंदगी, एम्स में शुरू हुआ ट्रायल

इसी उम्मीद को लेकर एम्स के विशेषज्ञों आघातजन्य अपूर्ण रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद कॉर्टिकल इंटरमिटेंट थीटा बर्स्ट के माध्यम से न्यूरोजेनिक मूत्राशय प्रबंधन विषय पर ट्रामा सेंटर के मरीजों पर ट्रायल शुरू किया है।

रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) में लगी चोट के बाद मरीज को हुई दिव्यांगता ठीक हो सकती है। इसी उम्मीद को लेकर एम्स के विशेषज्ञों आघातजन्य अपूर्ण रीढ़ की हड्डी की चोट के बाद कॉर्टिकल इंटरमिटेंट थीटा बर्स्ट के माध्यम से न्यूरोजेनिक मूत्राशय प्रबंधन विषय पर ट्रामा सेंटर के मरीजों पर ट्रायल शुरू किया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि रीढ़ की हड्डी में चोट, टूटना या दूसरे कारणों से हुई दिव्यांगता कभी ठीक नहीं हो सकती। मरीज को जिंदगी भर ऐसे ही स्थिति में रहना पड़ता है। रीढ़ की हड्डी शरीर का मुख्य अंग है। यह एक लंबी, नाजुक, ट्यूब जैसी संरचना है जो मस्तिष्क से रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से तक जाती है। यह मस्तिष्क और शरीर के बाकी हिस्सों के बीच संदेशों को ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
यदि किसी कारण से यह प्रभावित हो जाती है तो मस्तिष्क के निचले अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसी समस्या को दूर करने के लिए रीढ़ की हड्डी में चोट के मरीजों पर कॉर्टिकल इंटरमिटेंट थीटा बर्स्ट देखकर यह पता लगाया जा रहा है कि प्रभावित अंग को फिर से पहले की तरह चलाया जा सकता है।

कॉर्टिकल इंटरमिटेंट थीटा बर्स्ट एक तरह की दोहराई जाने वाली ट्रांसक्रैनील चुंबकीय उत्तेजना है, जो कॉर्टेक्स को उत्तेजित करने के लिए प्रयोग की जाती है। यह तंत्रिका गतिविधि को मजबूत करने और दीर्घकालिक पोटेंशिएशन को प्रेरित करने के लिए जानी जाती है।

ट्रायल सफल रहा तो बदल जाएगी मरीज की जिंदगी
एम्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. कामरान फारूक ने कहा कि ट्रायल सफल रहा तो मरीजों की जिंदगी बदल जाएगी। अभी इसका कोई इलाज नहीं है। यदि एक बाद स्पाइनल कॉर्ड में चोट लगी तो प्रभावित अंग को ठीक करना संभव नहीं। इस ट्रायल में कॉर्टिकल इंटरमिटेंट थीटा बर्स्ट देकर संकेत देने का प्रयास कर रहे हैं। इस ट्रायल में एम्स के फिजियोलॉजी विभाग, ऑर्थोपेडिक्स विभाग, यूरोलॉजी विभाग और मनोचिकित्सा विभाग के विशेषज्ञ शामिल हैं।

रीढ़ की हड़डी में चोट के बाद हो सकती है यह समस्या
न्यूरोजेनिक मूत्राशय (पेशाब पर कंट्रोल न रहना) रीढ़ की हड्डी की चोट की प्रमुख जटिलताओं में से एक है। मौजूदा समय में नियमित मूत्राशय देखभाल (स्वच्छ आंतरायिक कैथीटेराइजेशन) और औषधीय प्रबंधन से इस जटिलता को कम कर सकते हैं। ऐसी समस्याओं पर जांच की जा रही है। आंतरायिक थीटा बर्स्ट उत्तेजना एक पैटर्न वाली गैर-आक्रामक है। ट्रांसक्रैनियल चुंबकीय उत्तेजना प्रक्रिया, जो कॉर्टिकोस्पाइनल प्लास्टिसिटी में कुछ बदलाव करके ऐसे रोगियों की स्थिति में कुछ सुधार कर सकती है। ट्रांस-स्पाइनल चुंबकीय उत्तेजना ने मूत्राशय के मापदंडों में क्षणिक रूप से सुधार किया है। वहीं पूर्ण रीढ़ की हड़डी चोट के रोगियों में स्वैच्छिक पेशाब की स्थिति को फिर से ठीक किया है।

18 से 60 साल के मरीजों पर ट्रायल
रीढ़ की हड़डी के चोट से प्रभातिव 18 से 60 साल के मरीजों पर यह ट्रायल किया जा रहा है। दो साल तक यह ट्रायल चलना है। इस मरीजों के पांच सत्र होंगे। ट्रायल के दौरान शुरुआती परिणाम बेहतर मिले है। जिन मरीजों में पेशाब के नियंत्रण में दिक्कत थी, उसमें सुधार देखा गया है।

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