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दिल्ली विधानसभा के लिए स्वतंत्र सचिवालय और वित्तीय स्वायत्तता के प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी

...मानसून सत्र में नियम समिति की रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत की जाएगी

मेट्रो मीडिया , नई दिल्ली।
दिल्ली विधान सभा की नियम समिति ने दिल्ली विधानसभा के लिए एक स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना और वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने के प्रस्ताव को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है। यह समिति आगामी मानसून सत्र में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जिसे विधानसभा में रखा जाएगा। नियम समिति की बैठकीय अध्यक्षता विधान सभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने की।
यह एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव है जो विधायिका की संस्थागत संरचना को मज़बूती प्रदान करने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुरूप है। समिति में अध्यक्ष के रूप में माननीय अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता तथा सदस्य के रूप में माननीय उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट, अशोक गोयल, शिखा रॉय, संदीप सहरावत, श्री उमंग बजाज, श्री जरनैल सिंह, प्रवेश रत्न और वीरेन्द्र सिंह कादियान शामिल हैं।

1993 में गठन के बाद से, दिल्ली विधानसभा बिना किसी समर्पित सचिवालय संवर्ग अथवा वित्तीय स्वतंत्रता के कार्य कर रही है। संसद और राज्य विधानसभाओं के विपरीत, जहां अध्यक्ष को नियुक्तियों और प्रशासनिक मामलों में अधिकार प्राप्त होता है, दिल्ली विधानसभा विभिन्न सरकारी विभागों से प्रतिनियुक्त अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस व्यवस्था के कारण संचालन में अक्षमीयता और विधानसभा की कार्यात्मक स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न होती है।

इस गंभीर चिंता को ध्यान में रखते हुए, विधानसभा अध्यक्ष ने बैठक में एक अलग विधायी सचिवालय की स्थापना और विधानसभा को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 98 और 187 के अनुरूप है, जो संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए ऐसे प्रावधानों की अनुमति प्रदान करते हैं।

17 से 19 दिसंबर 2021 के बीच शिमला में आयोजित 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में, जिसकी अध्यक्षता माननीय लोकसभा अध्यक्ष ने की थी, सर्वसम्मति से निम्नलिखित संकल्प पारित किया गया:
“…सम्मेलन यह संकल्प करता है कि सभी विधानसभाओं को संसद के दोनों सदनों के समान वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त होनी चाहिए।”

यह निर्णय 31 दिसंबर 2021 को लोकसभा महासचिव द्वारा दिल्ली के मुख्य सचिव को एक पत्र के माध्यम से भेजा गया, जिसमें दिल्ली विधानसभा से परामर्श कर शीघ्र कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया था।

वर्तमान में तीन केंद्र शासित प्रदेशों के पास अपनी विधानसभाएं हैं—दिल्ली (एनसीटी), पुडुचेरी और हाल ही में गठित जम्मू और कश्मीर। इनमें केवल दिल्ली विधानसभा एक संवैधानिक संस्था है, जबकि पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर विधानसभाएं क्रमशः ‘केंद्रशासित प्रदेश शासन अधिनियम, 1963’ और ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019’ के अंतर्गत बनी वैधानिक संस्थाएं हैं।

हालांकि, संविधान या एनसीटी दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 में दिल्ली विधानसभा के लिए किसी पृथक सचिवालय का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 239AA(बी) के अंतर्गत, जो संसद को दिल्ली विधानसभा के कार्यप्रणालियों से संबंधित मामलों को विनियमित करने का अधिकार देता है, यह प्रस्तावित किया गया है कि नियम समिति एनसीटी दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 में संशोधन की अनुशंसा कर सकती है। इससे पृथक सचिवालय की स्थापना और वित्तीय स्वायत्तता की प्राप्ति संभव हो सकेगी, जिससे दिल्ली विधानसभा को राज्य विधानसभाओं और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के समान स्तर पर लाया जा सकेगा।

इस प्रस्ताव के कार्यान्वयन के पश्चात्, यह दिल्ली विधानसभा की संस्थागत स्वतंत्रता, गरिमा और प्रभावी कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

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