तीस हजारी कोर्ट ने आईडीबीआई बैंक के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मी के परिजनों को 22.4 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का आदेश दिया है। 2008 में एक सुरक्षा गार्ड की गलती से गोली चल जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी।
अदालत ने गार्ड, बैंक और सुरक्षा एजेंसी को लापरवाही के लिए समान रूप से जिम्मेदार ठहराया। जिला न्यायाधीश नरेश कुमार लाका मृतक चंद्र देव (49) के परिवार के सदस्यों की ओर से मुआवजे के लिए दायर मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे। उसमें दावा किया गया था कि सुरक्षा गार्ड ने लापरवाही से अपनी बंदूक का ट्रिगर दबा दिया, जिससे 18 फरवरी 2008 को देव को घातक चोटें आईं।
घटना सुरक्षा गार्ड विनय कुमार की लापरवाही के कारण हुई
अदालत ने 24 मार्च के अपने आदेश में कहा कि यह आरोप लगाया गया है कि उक्त घटना सुरक्षा गार्ड विनय कुमार की लापरवाही के कारण हुई। उसे केंद्रीय जांच और सुरक्षा सेवा लिमिटेड की तरफ से नियुक्त किया गया था। विनय समय-समय पर उक्त बंदूक की टूट-फूट की जांच करने में विफल रहा। इस प्रकार विनय, कंपनी और आईडीबीआई बैंक संयुक्त रूप से अप्रत्यक्ष रूप से वादी को ब्याज सहित 20 लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी हैं।
भुगतान 30 दिनों के भीतर किया जाए
अदालत ने गार्ड के बचाव को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि कोई लापरवाही नहीं थी। जब वह बंदूक से कारतूस निकालने की कोशिश कर रहा था, तब दुर्घटनावश गोली चल गई थी। विभिन्न मदों के तहत मुआवजे की राशि 22.4 लाख रुपये से अधिक व उस पर नौ प्रतिशत ब्याज की गणना करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि भुगतान 30 दिनों के भीतर किया जाए।
रिमांड के दौरान आरोपी को गिरफ्तारी का आधार देना वैध नहीं: हाईकोर्ट
उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस की ओर से मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए गए रिमांड आवेदन के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताना कानून की आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं है। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि चूंकि गिरफ्तारी से पहले उसके आधार मौजूद होने चाहिए, इसलिए पुलिस डायरी या अन्य दस्तावेज में गिरफ्तारी के आधार का समसामयिक रिकॉर्ड होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को उसका आधार लिखित रूप में न बताने का कोई कारण नहीं हो सकता है। अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में एक आरोपी को राहत प्रदान की।
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