पाकिस्तान का परमाणु हथियार विकसित करने का मुख्य उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था। लेकिन इसके निर्माता और प्रसारक अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में इसका उद्देश्य बदल गया और एक इस्लामी बम में बदल दिया गया। इसका मकसद ईरान सहित अन्य इस्लामी देशों तक इस तकनीक को पहुंचाना और इसका विस्तार करना था। यह बात अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने यह बात कही।
बार्लो ने न्यूज एजेंसी ‘एएनआई’ से बातचीत में बताया कि 1980 के दशक में वह पाकिस्तान की गोपनीय परमाणु गतिविधियों के दौरान एक प्रसार-विरोधी अधिकारी के रूप में खुफिया एजेंसी का हिस्सा थे। उन्होंने बताया कि कैसे कादिर खान के नेटवर्क ने 1990 के दशक की शुरुआत में ईरान को गैस सेंट्रीफ्यूज तकनीक और शायद परमाणु हथियारों की योजनाएं भी दीं, जिससे तेहरान के परमाणु कार्यक्रम में दशकों तक तेजी आई।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का कार्यक्रम केवल भारत की क्षमताओं के रणनीतिक तवाब के रूप में नहीं था, जिसने 1974 में परमाणु हथियार हासिल कर लिए थे, बल्कि इसके पीछे व्यापक वैचारिक महत्वकांक्षाएं भी थीं। बार्लो ने कहा, पाकिस्तान का परमाणु हथियार विकसित करने का प्राथमिक उद्देश्य भारत का मुकाबला करना था। लेकिन अब्दुल कादिर खान और जनरलों के दृष्टिकोण से यह भी भी बहुत स्पष्ट था कि यह केवल पाकिस्तानी बम नहीं था, बल्कि यह इस्लामी बम था, मुस्लिम बम था।
जुल्फिकार अली भुट्टों का ‘मुस्लिम बम’ बनाने का विचार
उन्होंने आगे कहा, मुझे लगता है कि एक बार अब्दुल कादिर खान ने कहा था, ईशाई बम है, यहूदी बम है और हिंदू बम है। हमें एक मुस्लिम बम की जरूरत है। मेरे लिए यह बहुत स्पष्ट था कि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने का इरादा रखता है और यही हुआ। हालांकि, ‘मुस्लिम बम की जरूरत’ वाला विचार अब्दुल कादिर खान का नहीं था। बल्कि यह विचार उस समय के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टों का था। जिन्होंने आह्वान किया था कि ऐसे बम की जरूरत है। अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में पाकिस्तान ने परमाणु कार्यक्रम शुरुआत की थी।
कौन थे अब्दुल कादिर खान?
अब्दुल कादिर खान का जन्म 1936 में अविभाजित भारत के भोपाल में हुआ और वह 1952 में परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए। वह दुनिया के सबसे कुख्यात परमाणु तस्करों में से एक थे। उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया जैसे देशों को तकनीक पहुंचाई। उन्हें पाकिस्तान परमाणु कार्यक्रम का पिता कहा जाता है। उनका निधन 2021 में इस्लामाबाद में हुआ।
अमेरिका ने 20 से 24 वर्षों तक कुछ नहीं किया: बार्लो
बार्लो ने सीआईए में अपने कार्यकाल के दौरान परमाणु हथियारों के प्रसार की गतिविधियों की जांच की थी। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि पाकिस्तान के गुप्त परमाणु सौदों पर वॉशिंगटन की प्रतिक्रिया में लापरवाही देखने को मिली। बार्लो ने कहा, अमेरिका ने 1987 और 1988 में इसके खिलाफ कुछ भी करने से इनकार ही नहीं किया, बल्कि अगले 20 से 24 वर्षों तक कुछ भी नहीं किया। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम और ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं के संबंध में बार्लो ने दावा किया कि गैस सेंट्रीफ्यूज विकास में ईरान की प्रगति सीधे अब्दुल कादिर खान के नेटवर्क द्वारा प्रदान की गई तकनीक से जुड़ी हुई थी। उन्होंने कहा, ईरान कभी भी बिना पाकिस्तान की मदद के गैस सेंट्रीफ्यूज नहीं बना सकता था। यह बहुत कठिन कार्य है।
बार्लो ने आगे कहा कि हालांकि ईरान ने बाद में अपने दम पर काफी प्रगति की है, लेकिन उनके कार्यक्रम की नींव पाकिस्तान की मदद पर बनी थी। उन्होंने कहा, अब लगता है कि ईरानी परमाणु कार्यक्रम काफी अपडेट है, लेकिन यह पाकिस्तान की मदद के बिना शुरू नहीं हो सकता था।

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