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Supreme Court: उज्जैन मस्जिद गिराने के खिलाफ याचिका खारिज, पुनर्निर्माण पर अदालत ने अधिग्रहण को बताया वैध

सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद गिराने के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी थी और प्रभावित पक्षों को मुआवजा दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को गिराने के खिलाफ दाखिल याचिका को शुक्रवार को खारिज कर दिया। जनवरी में मस्जिद की जमीन पर सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद इसे ध्वस्त करने का काम किया। मामले पर अदालत ने कहा कि भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया कानून के अनुसार पूरी की गई थी और अब इस पर दोबारा सुनवाई की कोई गुंजाइश नहीं बची है।

उज्जैन स्थित तकिया मस्जिद का निर्माण लगभग दो शताब्दियों पहले हुआ था। प्रशासन ने महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र का विस्तार करने के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू की थी। इस अधिग्रहण के बाद जनवरी 2025 में मस्जिद को गिरा दिया गया। इसके खिलाफ 13 याचिकाकर्ताओं ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की थी।

हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मस्जिद पुनर्निर्माण की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने डिवीजन बेंच में अपील की, जिसे 7 अक्तूबर को अस्वीकार कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी तरह वैध थी और याचिकाकर्ताओं का पुनर्निर्माण की मांग पर कोई अधिकार नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने इसी आदेश को चुनौती दी, लेकिन जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि 200 वर्ष पुरानी मस्जिद को केवल पार्किंग के लिए गिरा दिया गया, जबकि यह 1985 से वक्फ संपत्ति घोषित थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण वैधानिक प्रक्रिया के तहत किया गया था और प्रभावित पक्षों को मुआवजा दिया गया। अदालत ने स्पष्ट कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता। बेंच ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में पर्याप्त कारण दर्ज किए हैं, जिन पर हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रशासनिक पक्ष और अदालत का निष्कर्ष
अधिकारियों ने अदालत में कहा था कि भूमि का अधिग्रहण कानूनन प्रक्रिया के तहत किया गया, मुआवजा दिया गया और अब वह भूमि राज्य सरकार के नाम दर्ज है। उन्होंने कहा कि पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए भूमि खाली कराना आवश्यक था और इसमें किसी तरह की अवैधता नहीं हुई। उच्च न्यायालय ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका को पूर्ण रूप से खारिज कर दिया।

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