महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। बुधवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ताधारी पक्ष में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। इसके ठीक एक दिन बाद गुरुवार को दोनों नेताओं की मुलाकात विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई। यह बैठक करीब 20 मिनट तक चली। इस बैठक में आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे। इन दो मुलाकातों ने राजनीतिक गलियारों में नई संभावनाओं को जन्म दे दिया है। हालांकि दोनों पार्टी की ओर से इस मुलाकात को लेकर कोई भी आधिकारिक बयान नहीं आया है।
बुधवार को विधानसभा में बोलते हुए फडणवीस ने साफ कहा कि भारतीय जनता पार्टी 2029 तक विपक्ष में जाने वाली नहीं है। उन्होंने उद्धव ठाकरे को इशारों में संदेश देते हुए कहा कि वह चाहें तो किसी अलग रास्ते से सत्तापक्ष में आ सकते हैं। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब उद्धव ठाकरे लगातार बीजेपी और शिंदे सरकार की तीन-भाषा नीति को लेकर आलोचना कर रहे हैं।
पुराने गठबंधन का नया संकेत?
शिवसेना और बीजेपी ने 25 साल तक साथ मिलकर महाराष्ट्र में राजनीति की। लेकिन 2014 में सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों में दरार आ गई। 2019 में उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद सरकार गिर गई और फडणवीस ने शिंदे के साथ मिलकर सत्ता संभाली।
उद्धव-राज ने एक मंच साझा कर बदली सियासी फिजा
हाल के दिनों में उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के बीच भी नजदीकियां बढ़ी हैं। 5 जुलाई को दोनों ने पहली बार दो दशक बाद एक मंच साझा किया। यह मौका था महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने वाले दो आदेशों को वापस लेने के जश्न का। इससे पहले अप्रैल में राज ठाकरे ने कहा था कि दोनों भाइयों के बीच पुरानी बातें तुच्छ थीं और मराठी मानूस के लिए एक होना जरूरी है।
क्या फिर साथ आएंगे ठाकरे और बीजेपी?
फडणवीस और उद्धव की मुलाकातों को लेकर अब यह अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या दोनों पुराने साथी एक बार फिर साथ आ सकते हैं। खास बात यह है कि फडणवीस का बयान और फिर उनकी मुलाकात ऐसे समय हुई है जब उद्धव ठाकरे शिंदे सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं और एमएनएस के साथ तालमेल की चर्चा चल रही है।
राज और उद्धव के बीच बढ़ती नजदीकियों ने बीजेपी को सोचने पर मजबूर किया है। अगर मराठी वोट बैंक को लेकर ठाकरे बंधु एक हो जाते हैं तो बीजेपी को 2024 और 2029 की राजनीति में नुकसान हो सकता है। इसलिए फडणवीस की कोशिश यही मानी जा रही है कि किसी भी हालत में उद्धव को अपने पाले में वापस लाया जाए।
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