पटाखों पर कोर्ट ने प्रतिबंध हटा लिया है, लेकिन 7 साल तक लगी रोक के दौरान भी राजधानी में हर दिवाली पटाखों की गूंज सुनाई देती रही। इसके लिए प्रशासन की निगरानी पर सवाल उठना लाजिमी है। एक और वजह दिल्लीवासियों का पटाखों की परंपरा से खुद को अलग न कर पाना भी है।
वर्ष 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने पारंपरिक पटाखों पर रोक लगाई और ग्रीन पटाखों की अनुमति दी, तो उम्मीद थी कि इससे वायु गुणवत्ता सुधरेगी। लेकिन इसके पालन में लापरवाही और नियंत्रण की कमी से हर दीपावली पर एक्यूआई की स्थिति खराब होती रही।
दिल्ली पुलिस हर साल बड़ी मात्रा में अवैध पटाखे बरामद करती है, लेकिन दीपावली पर सस्ते और अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर लगाम लगती नहीं दिखती। वर्ष 2020 में एनजीटी ने पूर्ण प्रतिबंध लगाया, तब भी स्थिति में खास बदलाव नहीं आया। प्रतिबंध के बावजूद दिवाली की रात पटाखे फूटे, और शादी-ब्याह में भी आतिशबाजी आम रही।
दिल्ली के निवासी हरियाणा और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले सोनीपत, फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम, झज्जर, रोहतक, गाजियाबाद और नोएडा से पटाखे खरीदकर लाते रहे। कई जगह सोशल मीडिया या व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिये सीक्रेट सेल्स भी होती रहीं। पुलिस ने खुद माना कि पड़ोसी राज्यों से आने वाली छोटी-छोटी सप्लाई चैन पूरी तरह नहीं तोड़ी जा सकती।
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल (2024) दिवाली से पहले 250 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की थीं और 100 से ज्यादा लोगों को पटाखों के साथ हिरासत में लिया था। इसके बावजूद दीपावली पर पटाखों की धमक सुनाई देती रही। अब जब इस साल प्रतिबंध हटा दिया गया है, तो पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों के सामने चुनौती है कि स्वीकृत ग्रीन पटाखे ही दगाए जाएं और वह भी सीमित मात्रा में। सवाल वही है, जब पटाखों पर लगे प्रतिबंध, लाखों रुपये के जुर्माने, सैकड़ों मुकदमे और हजारों किलो जब्ती के बावजूद दिवाली की रातें सतरंगी रहीं, तो अब कैसे तय होगा कि सिर्फ ग्रीन पटाखे ही फूटेंगे।
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