नई दिल्ली। राजस्थान के उदयपुर में आदमखोर तेंदुए को देखते ही गोली मारने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिकाकर्ता ने जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस प्रशांत मिश्र की खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि आखिर आदमखोर तेंदुए की पहचान कैसे होगी? इस आदेश से बाघों को भी खतरा हो जाएगा। लोग बंदूकें लेकर जंगल में घूम रहे हैं जबकि कायदे से उनको ट्रैंक्यूलाइजर गन रखनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि कोर्ट अपने आदेश से सुनिश्चित करे कि तेंदुओं को मारा ना जाए। इस पर कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आखिर आपको क्यों लगता है कि वो मारने के लिए ही बंदूक लिए घूम रहे हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते? बॉम्बे हाईकोर्ट की एक गाइडलाइन भी है आदमखोर जानवरों से निपटने के मामले में।
सुप्रीम कोर्ट ने अजॉय दुबे द्वारा दायर याचिका में किसी भी किस्म की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। याचिका राजस्थान के उदयपुर में एक तेंदुए के हत्या से संबंधित थी। यह याचिका राजस्थान वन विभाग के एक अक्टूबर 2024 को पारित एक आदेश को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई है, जिसमें कहा गया था कि तेंदुए को बेहोश करने का प्रयास किया जाएगा। लेकिन यदि वन विभाग इसमें विफल रहा, तो उसे मार दिया जाएगा।
राजस्थान सरकार ने कोर्ट को बताया कि यह तेंदुआ पहले ही सात लोगों की जान ले चुका है। वन विभाग के मुताबिक तेंदुआ पहले मानव के हाथों को काटता है और फिर उसकी हत्या करता है। इस पर जनता में असंतोष है इसलिए यह निर्णय महत्वपूर्ण था। उदयपुर के एक विशेष गांव में इस तेंदुए की केवल पहचान की गई थी। राजस्थान सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि पहले सभी संभावित प्रयास किए जाएंगे ताकि तेंदुए को बेहोश कर उसे पकड़ लिया जाए, और यदि आवश्यक हुआ, तो आखिरी उपाय के रूप में उसे मारा जाएगा।
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