राजधानी पहुंचने वाले पर्यटकों की सबसे पसंदीदा जगह कुतुबमीनार है। पर्यटन मंत्रालय के पिछले साल के आंकड़ों के मुताबिक, घरेलू के साथ विदेशी सैलानी भी सल्तनत काल की इस इमारत का दीदार करने भारी संख्या में पहुंच रहे हैं।
अभाव और अव्यवस्था पर्यटकों की घटा रहे संख्या
पर्यटन उद्योग के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं स्मारकों पर बढ़ती भीड़, स्वच्छता की कमी और सुरक्षा को लेकर लापरवाही कई बार पर्यटकों की संख्या घटा देती है। ऐसे में गलियों के बीच या दूर बसे ऐतिहासिक धरोहरों तक पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं। रिक्शा चालक मनीष ने बताया कि इंडिया गेट, लाल किला और कुतुब मीनार जैसी जगहों पर आसानी से जाया जा सकता है लेकिन कुछ ऐसे इलाके हैं जहां जाना काफी मुश्किल हो जाता है। इसी कारण वहां के लिए सवारियों को थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ती है। वहीं, कई स्थलों पर असुविधा भी है। इन सब कारणों से पर्यटकों की संख्या कम होती जा रही है।
पर्यटकों से भाषा ही नहीं, रिश्ते भी मजबूत कर रहे गाइड
दिल्ली में सैलानियों को ऐताहसिक स्थलों और इमारतों का इतिहास और भूगोल समझाने वाले गाइड रफीक बताते हैं कि पर्यटन सिर्फ हमारी रोज़ी-रोटी नहीं, बल्कि दोस्ती का पुल है। जब विदेशी पर्यटक हिंदी बोलने की कोशिश करते हैं तो हमें अपनापन लगता है। उन्होंने बताया कि सभी गाइड भी पूरी कोशिश करते हैं कि पर्यटक केवल घूमें नहीं बल्कि एक रिश्ता बनाकर लौटे।
दिल्ली की गुमनाम इमारतें
किसी भी स्मारक का इतिहास और भूगोल समझने के लिए, उसे सुंदरता की दृष्टि से देखें। ये हमारी धरोहर हैं। इनकी गरीमा को ठेस न पहुंचाएं। इनपर और इनकी दीवारों पर तरह-तरह के चित्र न बनाएं और अपना नाम न लिखें। भारतवर्ष का इतिहास बहुत गौरवशाली एवं प्राचीन है, उसका सम्मान करें।
-नंदिनी भट्टाचार्य साहु, संयुक्त महानिदेशक (पुरातत्व) एवं मीडिया प्रभारी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
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