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US Court: अमेरिकी अदालतों ने रोकी भारतीय मूल के व्यक्ति की देश निकाला प्रक्रिया, 43 साल बाद साबित हुआ निर्दोष

Indian-Origin Man Halt Deportation: अमेरिकी अदालतों ने भारतीय मूल के 64 वर्षीय सुब्रमण्यम वेदम की निर्वासन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। वेदम ने 43 साल जेल में बिताए, बाद में साबित हुआ कि वह निर्दोष थे।

अमेरिकी अदालतों ने भारतीय मूल के उस व्यक्ति की देश निकाला प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, जिसे एक हत्या के झूठे आरोप में 43 साल जेल में रहना पड़ा। 64 वर्षीय सुब्रमण्यम वेदम की हत्या की सजा को इसी साल अदालत ने रद्द कर दिया था। वेदम जब सिर्फ 9 महीने के थे, तब अपने माता-पिता के साथ कानूनी रूप से अमेरिका पहुंचे थे। उनके पिता पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में शिक्षक थे।

अदालत का फैसला
अमेरिकी इमिग्रेशन जज ने गुरुवार को आदेश दिया कि जब तक बोर्ड ऑफ इमिग्रेशन अपील्स उनका केस नहीं देखता, तब तक वेदम को निर्वासित नहीं किया जाएगा। उनके वकीलों ने पेनसिल्वेनिया की जिला अदालत से भी राहत पाई, जिससे मामला फिलहाल स्थगित हो गया है।

43 साल पुरानी त्रासदी
वेदम को 1980 में अपने दोस्त थॉमस किंसर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गवाहों और सबूतों के अभाव में भी उन्हें दो बार दोषी ठहराया गया। लेकिन अगस्त 2024 में अदालत ने नई बैलिस्टिक जांच रिपोर्ट के आधार पर उनकी सजा रद्द कर दी। 3 अक्तूबर को जेल से रिहाई के बाद, उन्हें सीधा इमिग्रेशन अधिकारियों ने हिरासत में ले लिया। फिलहाल वे लुइसियाना के एलेक्जेंड्रिया डिटेंशन सेंटर में रखे गए हैं, जो निर्वासन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

क्यों करना चाहती है ICE निर्वासन
यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट वेदम को एक पुराने मामले के चलते निर्वासित करना चाहती है। करीब 20 साल की उम्र में उन्होंने LSD ड्रग केस में “नो कॉन्टेस्ट” प्लिया दी थी। वेदम के वकील कहते हैं कि उन्होंने 43 साल जेल में निर्दोष रहते हुए बिताए, जहां उन्होंने शिक्षा हासिल की और कैदियों को पढ़ाया भी इसलिए उनका पुराना मामला अब महत्वहीन है। लेकिन अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग का कहना है कि हत्या का केस रद्द होने से ड्रग केस की सजा खत्म नहीं होती।

परिवार की राहत
वेदम की बहन सरस्वती वेदम ने कहा हम आभारी हैं कि दो अलग-अलग अदालतों ने माना कि सुबु का निर्वासन अनुचित है। वह पहले ही 43 साल की सजा भुगत चुके हैं एक ऐसे अपराध के लिए, जो उन्होंने किया ही नहीं। अब उन्हें दोबारा अन्याय का शिकार नहीं होना चाहिए।

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