नवीन गौतम, नई दिल्ली।
दिल्ली देहात का खेती का दर्जा बहाल करने का मुद्दा दिल्ली विधानसभा में बजट सत्र के पहले दिन सोमवार को उठा। उठाने वाले थे बीजेपी के मुंडका से विधायक गजेंद्र दराल, निश्चित तौर पर उनके द्वारा उठाया गया मुद्दा बहुत ही गंभीर है लेकिन देखना होगा कि उनकी ही पार्टी की भाजपा सरकार इसे कितना गंभीरता से लेती है । दिल्ली देहात से कृषि देहात का दर्जा तो छिन गया था कांग्रेस सरकार के समय में ही लेकिन जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो भारतीय जनता पार्टी लगातार इस मसले को उठाती रही, खासतौर से भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा अध्यक्ष विनोद सहरावत। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस बाबत कई बार भरोसा दिया, कंझावला की किसान रैली में भी वह पहली बार मुख्यमंत्री बनकर पहुंचे तो आश्वासन देकर आए कृषि देहात का दर्जा बहाल करने का लेकिन नतीजा शून्य ही रहा । भाजपा लगातार इस मामले को उठाती रही और आम आदमी पार्टी की सरकार इसका ठीकरा भाजपा और उपराज्यपाल के सिर यह कहकर फोड़ती रही कि भाजपा के एजेंट के रूप में बैठे उपराज्यपाल इस कार्य को नहीं होने दे रहे हैं । खैर, उपराज्यपाल और तत्कालीन आम आदमी पार्टी के बीच रस्सा कसी का खामियाजा 10 साल तक दिल्ली के लोगों को भुगतना पड़ा, दिल्ली देहात के किसानों को भी भुगतना पड़ा। केंद्र सरकार के बजट में किसानों के लिए जिन बातों का प्रावधान होता है इसका लाभ अन्य राज्यों के किसानों को तो मिलता रहा लेकिन दिल्ली के किसान इससे वंचित रहे। वजह यही थी कि दिल्ली में 50 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती होने के बावजूद कृषि का दर्जा दिल्ली को नहीं मिला जिसके चलते किसानों को ना तो खाद पर सब्सिडी मिली और न ही केंद्र की अन्य किसानी योजनाओं का लाभ।
भाजपा इस मुद्दे को लेकर जब-जब तत्कालीन केजरीवाल सरकार के खिलाफ आक्रामक होती तो देहात के लोगों को यह भी भरोसा देती रही की वह सत्ता में आए तो दिल्ली देहात का कृषि देहात का दर्जा बहाल करेंगे। भाजपा सत्ता में आ चुकी है, किसान उम्मीद लगाए हुए हैं, दिल्ली देहात के अधिकांश लोगों ने इसी भरोसे पर भाजपा को तमाम सीट सौंप दी हैं। दिल्ली देहात से जुड़े अधिकांश विधायक इस बात को समझते भी हैं। मुंडका विधानसभा क्षेत्र से गजेंद्र दराल ने जब यह मुद्दा विधानसभा में उठाया तो फिर सवाल खड़ा हो गया क्या वास्तव में दिल्ली देहात का कृषि का दर्जा बहाल हो पाएगा। यह सवाल इसलिए उठ रहा है और संशय इसलिए है क्योंकि भाजपा का एक खेमा दिल्ली देहात को कृषि देहात का दर्जा बहाल करने के खिलाफ है और वह लैंड पूलिंग का पक्षधर ज्यादा है, लैंड पूलिंग में उसे अपने हित नजर आते हैं भले ही वह खेमा तर्क दे कि लैंड पूलिंग में किसानों का फायदा है लेकिन हकीकत यही है कि किसानों का हित और दिल्ली के पर्यावरण का हित दिल्ली देहात में खेती का दर्जा बहाल करने में ही है अन्यथा लैंड पूलिंग की स्थिति में कंक्रीट के जंगल खड़े हुए तो फिर दिल्ली में हरियाली का दायरा कम होगा, गांव ना तो गांव रहेंगे और न ही शहर बन पाएंगे अपितु स्लम बस्ती बनकर रह जाएंगे और फिर प्रदूषण न केवल सर्दी में अपितु पूरे वर्ष भर रौद्र रूप धारण किए रहेगा।
भारतीय किसान यूनियन (अंबावता) के दिल्ली प्रदेश के चेयरमैन दिनेश डबास भी लैंड पूलिंग के बजाय दिल्ली देहात को कृषि देहात का दर्जा दिए जाने के पक्षधर है। खुद भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विनोद सहरावत भी उम्मीद जता रहे हैं दिल्ली की भाजपा सरकार दिल्ली देहात के पक्ष में बेहतर निर्णय करेगी। उनका कहना है कि यह पहली बार हुआ है कि बजट बनाने से पहले दिल्ली देहात के किसानों की बात खुद मुख्यमंत्री ने बुलाकर सुनी है।
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