बड़े ही नहीं बच्चों में भी गठिया बीमारी का खतरा बढ़ गया है। एम्स में हर वर्ष 250-300 बच्चे उपचार के लिए पहुंच रहे है। आनुवांशिक होने पर बच्चों में इसका जोखिम और अधिक बढ़ गया है। बीमारी के बढ़ते खतरे को लेकर डॉक्टरों ने लोगों से जागरूकता की अपील की है ताकि उपचार के लिए इधर-उधर न भटकें।
हड्डी संबंधी रोग समझ लेते है अभिभावक
डॉक्टरों ने कहा कि जब बच्चों को जोड़ों और हड्डी में दर्द होता है तो अभिभावक उसे फिजिशियन या हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास ले जाते है। आम लोगों में यह धारणा होती है कि यह हड्डी का रोग है। मगर, उस स्थिति में बच्चे को पीडियाट्रिक के पास ले जाने की आवश्यकता होती है। इस कारण उपचार में देरी हो जाती है। उपचार में देरी होने से हिप ज्वाइंट सहित गुर्दा, फेफड़े खराब होने लगते है। अगर समय रहते उपचार मिल जाए तो जोड़ों सहित शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित होने से रोका जा सकता है।
प्रभावी उपचार में न करें देरी
एम्स में हर वर्ष करीब 250-300 बच्चे उपचार के लिए पहुंच रहे है। आनुवांशिक होने पर सिबलिंग को भी पीडियाट्रिक रूमेटिक डिसऑर्डर हो सकता है। इस बीमारी के उपचार के लिए प्रभावी दवाएं उपलब्ध है। प्रभावी उपचार के लिए समय पर निदान और उचित चिकित्सा की शुरुआत महत्वपूर्ण है। बीमारी को लेकर जागरूकता बढ़ना जरूरी है। जिससे बच्चों में दिव्यांग होने से बचाया जा सकें। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि बच्चों में किडनी की बीमारियां भी बढ़ रही है। बच्चों में किडनी संबंधी बीमारी की मुख्य वजह उनमें जन्म से किडनी की बनावट ठीक ढंग से नहीं होना है। बच्चों को भी डायलिसिस कराना पड़ता है। साल में 15-20 बच्चों को किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है।
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