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दिल्ली सरकार का बजट : बीमारी का इलाज तो होगा, मगर बीमारी के कारण पर चोट नहीं

स्वास्थ्य बजट में तो इजाफा लेकिन मिलावट खोरी और नशा रोकने पर चुप्पी .... ग्रामीण विकास बोर्ड का होगा गठन लेकिन कृषि देहात के दर्जे पर सरकार मौन

 

नवीन गौतम, नई दिल्ली।
दिल्ली सरकार के बजट में पिछले बार की तुलना में लगभग 35 परसेंट का इजाफा करते हुए 1 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है । स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान हुआ, करोड़ों की राशि का प्रावधान किया गया है । मगर बीमारियां क्यों बढ़ रही है इसकी तरफ सरकार का ध्यान शायद अभी नहीं है, बीमारी का इलाज तो करेंगे लेकिन बीमारी के कारण पर कोई चोट की व्यवस्था बजट में नहीं है। ठीक इसी तरह की बात दिल्ली देहात को लेकर है, ग्रामीण विकास बोर्ड के गठन का प्रावधान तो किया है लेकिन कृषि देहात का दर्जा दिए जाने के मामले पर पूरी तरह से चुप्पी साद ली है जब कि किसान और पर्यावरण के लिए कृषि का दर्जा बहुत जरूरी है।
बजट में जो प्राथमिकताएं तय की गई है उन पर तो काम होना ही चाहिए मगर जरूरी यह भी है जिन विभागों की निष्क्रियता की वजह से ही दिल्ली में बीमारियां बढ़ रही हैं उन्हें सक्रिय किया जाए। ऐसे ही दिल्ली सरकार के दो विभाग हैं जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है लेकिन इन विभागों के बारे में दिल्ली के अधिकांश लोग तक नहीं जानते।
पहला विभाग है मध निषेध निदेशालय और दूसरा है खाद्य अपमिश्रण निवारण विभाग। दोनों ही जनता के स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं। अगर इन दोनों विभागों को सक्रिय कर दिया जाए तो दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उतना बजट रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी जितना रखा जाता है, लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा और जितनी तेजी के साथ बीमारियां बढ़ रही है उन पर भी अंकुश लगेगा।
मध निषेध निदेशालय की बात करें तो इसकी जिम्मेवारी नशाखोरी को रोकने की है। पिछले कुछ वर्षों पर नजर डालें तो दिल्ली में बड़े पैमाने पर नशे का चलन बढा है । ग्रामीण इलाके से लेकर शहरी क्षेत्र तक का युवा नशे की चपेट में है । सवाल बड़ा है कि आखिर नशा आता कहां से है ? निश्चित तौर पर इसे रोकने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है। जिन्हें मालूम होता है कि नशा कहां से आ रहा है, अगर वह कार्यवाई नहीं करते तो उन्हें तत्काल उनके पदों से हटा देना चाहिए। लेकिन इसके बीच जिम्मेदारी मध निषेध निदेशालय की भी है । जिस तरह से इसकी कार्य शैली है उसको देखकर लगता है कि यह केवल औपचारिकता वश बनाया हुआ है । यह ठीक है कि राजस्व में बहुत बड़ा योगदान शराब की बिक्री से आता है लेकिन नैतिक जिम्मेदारी भी है कि नशे के कारण हो रहे सामाजिक पतन को प्राथमिकता के आधार पर रोका जाए।
दूसरा एक अन्य महत्वपूर्ण विभाग है खाद्य अप मिश्रण निवारण विभाग।
जितनी तेजी के साथ मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री बढ़ी है उतनी ही इस विभाग की सक्रियता भी कम हुई है, कारण जो भी हो लेकिन सैंपल लेने और फिर उनकी रिपोर्ट आने तक में सालों साल गुजर जाते हैं। यहां तक कि कई अधिकारी मिलावट खोरी से साथ सांठ-गांठ रखते हैं जिसके चलते मिलावटखोरों का मनोबल बढा रहता है और वह जमकर खाद्य पदार्थों में मिलावट कर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं। स्वास्थ्य आंकड़ों पर ही नजर डाली जाए तो दिल्ली में लिवर व किडनी फेलियर, हार्ट अटैक, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के कारण मौत का आंकड़ा बड़ा है और इन सब का बहुत बड़ा कारण खाद्य पदार्थों में मिलावट और नशे का बढ़ता चलन है।

दिल्ली देहात को कृषि का दर्जा बजट और बजट भाषण से गायब रहा
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दिल्ली देहात को कृषि देहात का दर्जा न होने के कारण केंद्र सरकार के बजट में किसानों के लिए जिन बातों का प्रावधान होता है इसका लाभ अन्य राज्यों के किसानों को तो मिलता रहा लेकिन दिल्ली के किसान इससे वंचित रहे। वजह यही थी कि दिल्ली में 50 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती होने के बावजूद कृषि का दर्जा दिल्ली को नहीं मिला जिसके चलते किसानों को ना तो खाद पर सब्सिडी मिली और न ही केंद्र की अन्य किसानी योजनाओं का लाभ। भाजपा इस मुद्दे को लेकर जब-जब तत्कालीन केजरीवाल सरकार के खिलाफ आक्रामक होती तो देहात के लोगों को यह भी भरोसा देती रही की वह सत्ता में आए तो दिल्ली देहात का कृषि देहात का दर्जा बहाल करेंगे। दिल्ली देहात के अधिकांश लोगों ने इसी भरोसे पर भाजपा को तमाम सीटें सौंप दीं लेकिन बजट में इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साद ली गई है।

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