हाईकोर्ट ने सोमवार को एक 16 वर्षीय नाबालिग यौन शोषण पीड़िता को 26 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति मनोज जैन ने एम्स के चिकित्सा अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे लड़की के 26 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करें। पीड़िता को नवंबर 2024 से लेकर मार्च 2025 तक दो बार यौन शोषण का सामना करना पड़ा था।
पीड़िता और उसकी मां ने गंभीर मानसिक आघात का हवाला देते हुए गर्भपात के लिए अदालत में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने एम्स और इसके डॉक्टरों की टीम को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत 1 जुलाई को यह प्रक्रिया करने का निर्देश दिया। मेडिकल बोर्ड ने गर्भावस्था की उन्नत अवस्था के कारण गर्भपात की अनुमति देने के खिलाफ राय दी थी, क्योंकि इसके लिए संभवतः सिजेरियन सेक्शन की आवश्यकता होगी, जो लड़की के भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, मेडिकल बोर्ड ने यह भी कहा कि लड़की शारीरिक रूप से स्वस्थ है। फिर भी पीड़िता और उसकी मां ने गर्भावस्था को जारी न रखने पर जोर दिया।
दो बार हुआ यौन शोषण
पीड़िता के वकील के अनुसार, नाबालिग के साथ 2024 में दिवाली के दौरान एक व्यक्ति ने यौन शोषण किया था, लेकिन उसने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया। दूसरी घटना मार्च में हुई, जब उसे एक अन्य व्यक्ति ने यौन शोषण किया, जिसके परिणामस्वरूप गर्भवती हो गई। पीड़िता को अपनी गर्भावस्था का पता तब चला जब वह अपनी बहन के साथ डॉक्टर के पास गई। परिवार को इस बारे में पता चलने पर उसने यौन शोषण की बात बताई, जिसके बाद एफआईआर दर्ज की गई।
कोर्ट ने जताया दुख
कोर्ट ने कहा, इस मामला बहुत ही दुखद है। एम्स के डॉक्टरों को प्रक्रिया का पूरा रिकॉर्ड रखने और भ्रूण के ऊतक को संरक्षित करने का निर्देश दिया गया, जो डीएनए पहचान और जांच के उद्देश्यों के लिए आवश्यक हो सकता है। कोर्ट ने राज्य प्राधिकरणों को चिकित्सा प्रक्रिया, लड़की के अस्पताल में रहने और ऑपरेशन के बाद की देखभाल के सभी खर्चों को वहन करने का निर्देश दिया।
नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में सजा बरकरार
दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म मामले में दोषी ठहराए गए प्रेम शंकर उर्फ राजू की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने अपने फैसले में अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी। 2017 में हुई इस घटना के आरोपी को रोहिणी कोर्ट ने वर्ष 2023 में दोषी पाते हुए 10 साल की सश्रम कैद, 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसी सजा के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अमित महाजन की एकल पीठ ने कहा कि पीड़िता के बयानों और वैज्ञानिक साक्ष्यों, विशेष रूप से एफएसएल रिपोर्ट में पीड़िता के कपड़ों पर अपीलकर्ता के डीएनए के मिलान ने अभियोजन पक्ष के मामले को मजबूत किया। अदालत ने माना कि भले ही पीड़िता और अपीलकर्ता के बीच सहमति से संबंध प्रतीत होते हों, लेकिन पीड़िता की नाबालिग उम्र (15 वर्ष) के कारण यह बलात्कार के दायरे में आता है।
मामला 31 मार्च 2017 को दर्ज एफआईआर से शुरू हुआ, जब पीड़िता के पिता ने शिकायत की थी कि उनकी 15 वर्षीय बेटी स्कूल जाने के बाद लापता हो गई थी। पीड़िता को 28 अप्रैल 2017 को हरियाणा के बल्लभगढ़, शाहुपुरा से अपीलकर्ता के साथ बरामद किया गया। पीड़िता ने युवक पर नशीला पदार्थ देकर बेहोश करने और जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था। हाईकोर्ट ने माना कि पीड़िता के बयानों में कुछ असंगतियां थीं, जैसे कि उसका पड़ोसियों के सामने मदद न मांगना और फोन के सक्रिय रहने के बावजूद परिवार से संपर्क न करना। हालांकि, अदालत ने कहा कि ये मामूली असंगतियां अभियोजन पक्ष के मुख्य मामले को कमजोर नहीं करतीं।
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