रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस और चीन के बीच संबंध अभूतपूर्व रूप से उच्च स्तर पर हैं। उनका यह बयान तब आया, जब दोनों देशों ने मिलकर ‘पावर ऑफ साइबेरिया-2’ नाम की एक बड़ी गैस पाइपलाइन बनाने के लिए ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
ट्रंप के टैरिफ के बीच ऐतिहासिक समझौता
दोनों देशों ने यह समझौता ऐसे समय में किया है, जब विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर अमेरिका का रुख बदल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए भारी टैरिफ लगने से वैश्विक व्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है।
हर साल 50 अरब क्यूबिक प्राकृतिक गैस चीन पहुंचाएगी पाइपलाइन
यह विशाल परियोजना मंगोलिया के रास्ते हर साल पश्चिमी रूस से उत्तरी चीन तक 50 अरब क्यूबिक प्राकृतिक गैस पहुंचाएगी। यह पाइपलाइन यूरोप को गैस निर्यात में आई भारी गिरावट की भरपाई करने में रूस की मदद करेगी, जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से प्रभावित हुई है।
दोनों नेताओं ने मंगोलिया के राष्ट्रपति के साथ की बैठक
रिपोर्ट के मुताबिक, पुतिन के हालिया चीन दौरे के दौरान दोनों नेताओं ने एकसाथ कई घंटे बिताए। उन्होंने मंगोलिया के राष्ट्रपति उखना सुरेलसुख से भी मुलाकात और औपचारिक वार्ताएं कीं। इसके अलावा, दोनों नेता चीनी राष्ट्रपति के सरकारी आवास पर चाय पीते नजर आए।
रूसी सरकार कंपनी ने की समझौते की पुष्टि
मंगलवार दोपहर रूस की सरकारी उर्जा कंपनी गजप्रोम ने एलान किया कि ‘पावर ऑफ साइबेरिया-2’ गैस पाइपलाइन के निर्माण के लिए बाध्यकारी एक समझौता हुआ है। कई वर्षों से इस परियोजना को रूस शुरू करने की कोशिश कर रहा था।
ट्रंप की नीति के खिलाफ सामूहिक प्रतिक्रिया
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह समझौता पुतिन के लिए एक बड़ी जीत है। यूरोप के स्थान पर अब उन्होंने चीन को अपना प्रमुख गैस उपभोक्ता के रूप में देखना शुरू कर दिया है। यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उन कोशिशों के खिलाफ एक सामूहिक प्रतिक्रिया मानी जा रही है। ट्रंप अन्य देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे रूस से उर्जा खरीद बंद करें, ताकि यूक्रेन युद्ध को रोका जा सके।
दुनिया की सबसे बड़ी गैस परियोजना होगी
गजप्रोम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अलेक्सी मिलर ने कहा कि इस समझौते में तीस साल तक गैसे की आपूर्ति का प्रावधान है और इसकी कीमत की तुलना में कम होगी। उन्होंने समाचार एजेंसी तास को बताया कि यह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महंगी गैस परियोजना होगी। हालांकि, चीन इस समझौते की आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की है। चीन इस परियोजना को लेकर सतर्क रुख अपनाए हुए हैं, क्योंकि वह नवीनीकरण उर्जा की ओर जा रहा है और एकमात्र उर्जा आपूर्तिकर्ता पर निर्भर होने को लेकर चिंतित है।
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