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तुर्किए कंपनी विवाद : ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप सीमित’, दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप सीमित है। हालांकि केंद्र सरकार को यह दिखाना होगा कि खतरे की आशंका इतनी गंभीर थी कि नोटिस दिए बिना कार्रवाई जरूरी थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को तुर्किए की कंपनियों सिलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज और सिलेबी दिल्ली कार्गो टर्मिनल मैनेजमेंट की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। इन कंपनियों ने ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (बकास) द्वारा उनकी सुरक्षा मंजूरी रद्द करने के फैसले को चुनौती दी है। बकास ने 15 मई 2025 को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह मंजूरी तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी थी।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप सीमित है। हालांकि केंद्र सरकार को यह दिखाना होगा कि खतरे की आशंका इतनी गंभीर थी कि नोटिस दिए बिना कार्रवाई जरूरी थी। कोर्ट 21 मई को मामले की अगली सुनवाई करेगा।

सिलेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में तर्क दिया कि कंपनियों को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया और यह फैसला केवल सार्वजनिक धारणा के आधार पर लिया गया। उन्होंने कहा कि कंपनियां 17 साल से भारत में काम कर रही हैं और हम कोई धोखेबाज कंपनी नहीं हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बिना ठोस कारण बताए हमारी मंजूरी रद्द नहीं की जा सकती।

रोहतगी ने यह भी बताया कि सिलेबी भारत में नौ प्रमुख हवाई अड्डों दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद, गोवा, कोचीन और कन्नूर पर ग्राउंड हैंडलिंग और कार्गो सेवाएं प्रदान करती हैं और यह फैसला 3,791 नौकरियों और निवेशक विश्वास को प्रभावित करेगा। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक उड्डयन जैसे संवेदनशील मुद्दों से जुड़ा है।

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