अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन एक नए व्यापारिक कदम पर विचार कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रशासन विदेशी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर उनकी चिप की संख्या के आधार पर टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य कंपनियों को अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने या शिफ्ट करने के लिए मजबूर करना है।
इस प्रस्ताव के तहत वाणिज्य विभाग उत्पादों में मौजूद चिप के मूल्य का एक निश्चित प्रतिशत टैरिफ के रूप में लगाने की योजना बना रहा है। हालांकि यह अभी शुरुआती चरण में है और इसमें बदलाव संभव है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा, “अमेरिका अपनी राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी सेमीकंडक्टर उत्पादों के लिए विदेशी आयात पर निर्भर नहीं रह सकता। ट्रंप प्रशासन टैरिफ, टैक्स कटौती, डिरेग्युलेशन और ऊर्जा की उपलब्धता के जरिए मैन्युफैक्चरिंग को अमेरिका वापस लाने पर काम कर रहा है।”
अगर यह टैरिफ लागू होता है तो इसका असर सीधे उपभोक्ता सामानों की कीमतों पर पड़ेगा। छोटे उपकरणों जैसे इलेक्ट्रॉनिक टूथब्रश से लेकर बड़े गैजेट्स जैसे लैपटॉप तक महंगे हो सकते हैं। इससे अमेरिका में महंगाई और बढ़ने की आशंका है, जो पहले से ही फेडरल रिजर्व के 2% लक्ष्य से ऊपर है। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के अर्थशास्त्री माइकल स्ट्रेन ने कहा कि घरेलू स्तर पर बने सामान भी महंगे हो सकते हैं, क्योंकि उनके उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले इनपुट पर भी नए टैरिफ लगेंगे।
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में दवाओं पर 100% और हैवी-ड्यूटी ट्रकों पर 25% टैरिफ लगाया है। अप्रैल में फार्मा और सेमीकंडक्टर उत्पादों पर संभावित टैरिफ को लेकर जांच शुरू की गई थी। हालांकि सवाल यह है कि किन उत्पादों को टैरिफ के दायरे में लाया जाएगा, दरें क्या होंगी और क्या कुछ देशों या कंपनियों को छूट मिलेगी। अगस्त में ट्रंप ने कहा था कि सेमीकंडक्टर आयात पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा, लेकिन अमेरिका में उत्पादन करने वाली कंपनियों को छूट दी जाएगी।
एक रिपोर्ट के अनुसार, वाणिज्य विभाग 25% टैरिफ दर पर विचार कर रहा है। जापान और यूरोपीय संघ से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर 15% टैरिफ का सुझाव दिया गया है। इसके अलावा, चर्चा है कि अगर कोई कंपनी अपने उत्पादन का आधा हिस्सा अमेरिका में शिफ्ट करती है तो उसे निवेश के आधार पर छूट मिल सकती है। हालांकि यह कैसे लागू होगा, इस पर अभी कोई स्पष्टता नहीं है।
अगर यह प्रस्ताव लागू होता है तो इससे न सिर्फ अमेरिकी बाजार बल्कि दुनियाभर की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों और उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा। अमेरिका का लक्ष्य मैन्युफैक्चरिंग को अपने देश में वापस लाना है, लेकिन इसकी कीमत आम लोगों को महंगे गैजेट्स और उपकरणों के रूप में चुकानी पड़ सकती है।
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