बाकी कंपनियां भी कर सकती हैं फॉलो
सोनी हमेशा से इंडस्ट्री ट्रेंड्स के साथ तालमेल रखता आया है। ऐसे में यह फैसला आने वाले समय में स्मार्टफोन इंडस्ट्री के लिए नया मानक साबित हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि दूसरी कंपनियां भी इस ट्रेंड में शामिल होकर अपने फोन से साथ केबल देना बंद कर दें। चार्जिंग एडाप्टर बंद करने का ट्रेंड पहले एपल ने शुरू किया था जिसके बाद सैमसंग और कई बड़े निर्माताओं ने भी यही ट्रेंड फॉलो किया और अपने पैकेज से चार्जिंग एडाप्टर हटा दिया। यानी, अब जल्द ही स्मार्टफोन बॉक्स में यूएसबी केबल का शामिल न होना आम बात बन सकती है।
पर्यावरण को बचाने का तर्क या मुनाफे का खेल?
कंपनियों का तर्क है कि यूएसबी केबल हटाने का मकसद ई-वेस्ट घटाना और प्लास्टिक पैकेजिंग कम करना है। आज ज्यादातर उपभोक्ताओं के पास पहले से कई USB-C केबल्स हैं, तो नए बॉक्स में इसे जोड़ना व्यर्थ बताया जा रहा है। लेकिन हकीकत का दूसरा पहलू यह भी है कि एक्सेसरी हटाने से कंपनियों की लागत घटती है। भले ऐसा करने से कंपनियां एक फोन पर कुछ पैसों की बचत कर लेती हों, लेकिन जब करोड़ों यूनिट्स बिकती हैं तो यह बचत अरबों में पहुंच जाती है। बाद में कंपनियां इन्हें एक्सेसरीज के तौर पर अलग से बेचकर अतिरिक्त मुनाफा भी कमाती हैं।
अनब्रांडेड केबल से बढ़ेगा खतरा
अगर आपके पास पहले से कई केबल हैं, तब भी वे सभी भरोसेमंद नहीं होतीं। सस्ती या अनसर्टिफाइड केबल्स से स्लो चार्जिंग, ओवरहीटिंग या शॉर्ट सर्किट जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई यूजर्स ने लंबे समय के इस्तेमाल के बाद केबल पिन जलने या कनेक्टर खराब होने की शिकायत की है। ऐसे में लोग बार-बार नई केबल खरीदते हैं, जिससे कचरा और बढ़ता है, यानी कंपनियों का ‘ईको-फ्रेंडली’ होने का तर्क कमजोर पड़ जाता है।
एपल और सोनी ने शुरू किया ट्रेंड
एप्पल ने हाल ही में लॉन्च हुए AirPods मॉडलों में यूएसबी-सी केबल देना बंद कर दिया है, और अब सोनी ने भी अपने स्मार्टफोन में यही कदम उठाया है। अगर इतिहास खुद को दोहराता है, तो जल्द ही सैमसंग और शाओमी जैसी बड़ी कंपनियां भी इस रास्ते पर चल सकती हैं।
यूजर्स की अगल-अलग राय
कई यूजर्स का मानना है कि आज हर किसी के पास अतिरिक्त केबल्स हैं, इसलिए उन्हें हटाना समझदारी है। वहीं कुछ लोगों को लगता है कि जब कोई व्यक्ति हजारों रुपये खर्च कर नया फोन खरीदता है, तो चार्जिंग केबल तो बेसिक जरूरत है। आपका क्या मानना है? क्या कंपनियों का यह कदम सही है या सिर्फ मुनाफा कमाने का नया तरीका?
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