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Delhi: यूपी के एक जज की याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा- नहीं बन सकते वरिष्ठ अधिवक्ता, 36 साल के अनुभव का दावा

दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक जज की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी में दी गई सेवाएं नियम 9बी के तहत पात्रता के दायरे में नहीं आती हैं।

दिल्ली में बाहरी राज्यों के रिटायर्ड जज एवं न्यायिक अधिकारी वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर नामित नहीं हो सकते। दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक जज की याचिका खारिज कर दी। याचिका में हाईकोर्ट ऑफ दिल्ली डेजिग्नेशन ऑफ सीनियर एडवोकेट नियम, 2024 के नियम 9बी को चुनौती दी गई थी।

उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा (एचजेएस) से सेवानिवृत्त विजय प्रताप सिंह ने इसे चुनौती दी थी। उनका कहना था कि नियम 9बी उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता पद के लिए आवेदन करने से वंचित करता है। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि सीनियर अधिवक्ता की पदवी कोई सांविधानिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक सम्मान और विशेषज्ञता का प्रतीक है।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि नियम केवल दिल्ली के सेवानिवृत्त जज (डीएचजेएस) को सीनियर अधिवक्ता पद के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है। इस नियम में कोई असांविधानिकता नहीं है। कोर्ट ने माना कि यह नियम एक सुसंगत भेदभाव (इंटेलिजिबल डिफरेंशिया) पर आधारित है, क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट के पास केवल डीएचजेएस अधिकारियों के प्रदर्शन और मूल्यांकन रिपोर्ट्स (एसीआर/एपीएआर) उपलब्ध हैं, जबकि अन्य राज्यों के एचजेएस अधिकारियों के रिकॉर्ड तक पहुंच  संभव नहीं है।

36 साल के अनुभव का दावा
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि उनके पास उत्तर प्रदेश में 36 साल की न्यायिक सेवा का अनुभव है, जिसमें 16 साल एचजेएस में शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) और अपीलीय ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में भी सेवा दी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी में दी गई सेवाएं नियम 9बी के तहत पात्रता के दायरे में नहीं आतीं, क्योंकि इनकी प्रशासनिक निगरानी दिल्ली हाईकोर्ट के पास नहीं है। इस फैसले के साथ याचिकाकर्ता की मांग को अस्वीकार कर दिया गया।

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