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Delhi: हाईकोर्ट के जजों के प्रशासनिक पैनल में जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम गायब, आवास पर नकदी मिलने का मामला

दिल्ली हाईकोर्ट के प्रशासनिक पक्ष के न्यायाधीशों की हाल ही में ही समिति गठित की गई। इसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का उल्लेख नहीं किया गया।

नकदी बरामदगी विवाद में उलझे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का दिल्ली हाईकोर्ट के प्रशासनिक पक्ष के न्यायाधीशों की हाल ही में गठित समितियों में उल्लेख नहीं किया गया। 14 मार्च को न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में आग लगने के बाद जली हुई गड्डियां मिलने के बाद कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे एक अलग निर्णय बताया है, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा को हाल ही में उनके पैतृक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश की गई थी। वे पहले भी ऐसी कई प्रशासनिक समितियों का हिस्सा रहे हैं। उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित 27 मार्च के परिपत्र के अनुसार, समितियों का 26 मार्च से तत्काल प्रभाव से पुनर्गठन किया गया।

पुनर्गठित की गई 66 समितियों में प्रशासनिक और सामान्य पर्यवेक्षण, अधिवक्ताओं के लिए शिकायत निवारण समिति, आकस्मिक व्यय की मंजूरी के लिए वित्त और बजट और सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अलावा पांच लाख रुपये से अधिक के घाटे को बट्टे खाते में डालने की समिति शामिल है। मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय सहित अन्य सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विभिन्न समितियों में शामिल हैं।

इससे पहले, मुख्य न्यायाधीश के निर्देश के बाद न्यायमूर्ति वर्मा से काम वापस ले लिया गया था। 22 मार्च को मुख्य न्यायाधीश ने आरोपों की आंतरिक जांच करने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की और मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय की जांच रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया, जिसमें कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिलने की तस्वीरें और वीडियो शामिल थे। न्यायमूर्ति वर्मा ने किसी भी तरह के आरोप की निंदा की और कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने स्टोररूम में कभी कोई नकदी नहीं रखी।

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