राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के 100 साल पूरा होने पर नागपुर में विजयदशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित किया। इस मौके पर मोहन भागवत ने देश के लोगों से स्वदेशी की अपील की और पड़ोसी देशों में जारी उथल-पुथल का भी जिक्र किया। इसके साथ ही संघ प्रमुख ने पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर का भी जिक्र किया।
मौजूदा वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भरता नहीं होनी चाहिए
संघ प्रमुख ने कहा कि प्रचलित अर्थ प्रणाली के अनुसार, देश आर्थिक विकास कर रहा है। लेकिन प्रचलित अर्थ प्रणाली के कुछ दोष भी सामने आ रहे हैं। इस व्यवस्था में शोषण करने के लिए नया तंत्र खड़ा हो सकता है। पर्यावरण की हानि हो सकती है। हाल ही में अमेरिका ने जो टैरिफ नीति अपनाई, उसकी मार सभी पर पड़ रही है। ऐसे में हमें मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। निर्भरता मजबूरी में न बदलनी चाहिए। इसलिए निर्भरता को मानते हुए इसको मजबूरी न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा। साथ ही राजनयिक, आर्थिक संबंध भी दुनिया के साथ रखने पड़ेंगे, लेकिन उन पर पूरी तरह से निर्भरता नहीं रहेगी।
पड़ोसी देशों में हुईं हिंसक घटना पर जताई चिंता
संघ प्रमुख ने कहा कि प्रजातांत्रिक मार्गों से ही परिवर्तन आता है। हिंसा से ऊथल-पुथल आती है, लेकिन पूरी तरह से परिवर्तन नहीं हुआ। हाल के समय में विभिन्न देशों में कथित क्रांतियां हुईं, लेकिन कहीं कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो सका। हमारे पड़ोसी देशों में हिंसक ऊथल-पुथल होना हमारे लिए चिंता का विषय है। हमारा पड़ोसी देशों के साथ आत्मीयता का संबंध है। इससे चिंता होती है।
मोहन भागवत ने कहा, जब सरकार जनता से दूर रहती है और उनकी समस्याओं से काफी हद तक अनभिज्ञ रहती है और उनके हित में नीतियां नहीं बनाई जातीं, तो लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। लेकिन अपनी नाखुशी व्यक्त करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करने से किसी को कोई लाभ नहीं होता। अगर हम अब तक की सभी राजनीतिक क्रांतियों का इतिहास देखें, तो उनमें से किसी ने भी अपना उद्देश्य कभी हासिल नहीं किया। सरकारों वाले राष्ट्रों में हुई सभी क्रांतियों ने अग्रिम राष्ट्रों को पूंजीवादी राष्ट्रों में बदल दिया है। हिंसक विरोध प्रदर्शनों से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होता, बल्कि देश के बाहर बैठी शक्तियों को अपना खेल खेलने का मंच मिल जाता है।
मोहन भागवत ने कहा कि ‘आज पूरी दुनिया में अराजकता का माहौल है। ऐसे समय में पूरी दुनिया भारत की तरफ देखती है। आशा की किरण ये है कि देश की युवा पीढ़ी में अपने देश और संस्कृति के प्रति प्रेम बढ़ा है। समाज खुद को सक्षम महसूस करता है और सरकार की पहल से खुद ही समस्याओं का निदान करने की कोशिश कर रहा है। बुद्धिजीवियों में भी अपने देश की भलाई के लिए चिंतन बढ़ रहा है।’
मोहन भागवत ने कहा, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई हैं। भूस्खलन और लगातार बारिश अब सामान्य हो गए हैं। यह पैटर्न पिछले 3-4 वर्षों से देखा जा रहा है। हिमालय हमारी सुरक्षा दीवार है और पूरे दक्षिण एशिया के लिए जल का स्रोत है। यदि वर्तमान विकास की दिशा उन्हीं आपदाओं को बढ़ावा दे रही है जिन्हें हम देख रहे हैं, तो हमें अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करना होगा। हिमालय की वर्तमान स्थिति चेतावनी की घंटी है।
‘भौतिक विकास के साथ ही नैतिक विकास जरूरी’
उन्होंने कहा कि ‘मानव भौतिक विकास होता है, नैतिक विकास नहीं होता। आज अमेरिका को आदर्श माना जाता है और लोग चाहते हैं कि भारत, अमेरिका जैसा जीवन जिए,लेकिन जानकार मानते हैं कि उसके लिए और पांच पृथ्वियों की जरूरत होगी, तो वैसा विकास नहीं हो सकता। हमारी दृष्टि भौतिकता के साथ-साथ मानवता के विकास की भी है। हजारों वर्षों तक दुनिया में हमने इस दृष्टि से सुंदर, शांतिपूर्ण और मनुष्य और सृष्टि का सहयोगी जीवन प्रस्थापित किया था। आज फिर दुनिया भारत से अपेक्षा कर रही है और नियति यही चाहती है कि हम विश्व को फिर से ऐसा रास्ता दे।’
मोहन भागवत ने कहा कि ‘संघ अपनी दृष्टि और परंपरा से चलते हुए 100 साल पूरे कर चुका है। स्वयंसेवक और समाज के संकलित अनुभव संघ का चिंतन है। सारी दुनिया आगे चली गई है, हम भी आगे चले गए हैं। अब अगर हम तुरंत पीछे आएंगे तो गाड़ी उलट जाएगी। ऐसे में हमें धीरे-धीरे परिवर्तन करने होंगे और अपना खुद का विकास पथ बनाकर दुनिया के सामने रखेंगे तो सही विकास होगा। दुनिया को धर्म की दृष्टि देनी होगी। वो धर्म पूजा, खान-पान नहीं है, वो सभी को साथ लेकर चलने वाला और सभी का कल्याण करने वाला धर्म है। हमें विश्व को ये दृष्टि देनी होगी। लेकिन व्यवस्थाएं उसे नहीं बना सकतीं। व्यवस्थाएं मनुष्य बनाता है। वो जैसा है वैसी ही व्यवस्थाएं बनाएगा। जैसा समाज है, वैसी ही व्यवस्था चलेगी। इसलिए समाज के आचरण में बदलाव आना चाहिए।’
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