राजधानी के दर्ज इतिहास में तीसरी बार यमुना का विकराल रूप दिख रहा है जबकि बीते वर्षों की तुलना में हथिनी कुंड बैराज से कम पानी छोड़ा गया है। बुधवार रात 11 बजे जलस्तर 207.44 मीटर तक पहुंचने के साथ ही 2013 की बाढ़ पीछे छूट गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी बड़ी वजह यमुना की तली का उथला होते जाना है। गाद जमने से नदी का बेहतर प्रवाह नहीं हो रहा।
वहीं, एक के बाद एक यमुना में बने पुल भी प्रवाह को बाधित करते हैं। नदी का फ्लड प्लेन भी पहले की तरह अवरोध मुक्त नहीं है। इसका मिला-जुला असर पानी के फैलाव के तौर पर दिख रहा है। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े बताते हैं कि इस साल हथिनी कुंड से एक घंटे में सबसे ज्यादा पानी एक सितंबर की सुबह 9 बजे छोड़ा गया। इसकी मात्रा 3.29 लाख रही। यह इस सीजन का पीक डिस्चार्ज है जबकि 2023 में इसकी मात्रा 3.59 लाख क्यूसेक थी। 2013 व 2019 में यह आंकड़ा 8 लाख क्यूसेक से ज्यादा था। इसके बावजूद 2023 के अलावा दूसरे वर्षों में बाढ़ जनित त्रासदी मौजूदा वक्त की तुलना में कम दिखी थी। उस दौरान यमुना अपनी सरहद को नहीं लांघी थी और न ही बांधों में दरार डाल पाई थी जबकि इस साल यमुना का रूप दिल्ली में विकराल है।
ये हैं कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि नालों की गाद और निर्माण सामग्री को बाढ़ क्षेत्र में छोड़ने पर हालात बिगड़ रहे हैं। नदी की गहराई साल-दर-साल कम होती जा रही है। इससे पानी को भीतर रोके रखने की नदी की क्षमता घटी है। दूसरी तरफ दिल्ली में यमुना पर एक के बाद एक पड़ने वाले 12 से ज्यादा पुल प्रवाह को बाधित करते हैं। वहीं, इनसे गाद के जमने का आधार भी मिलता है। इसके अलावा पुलों की निर्माणाधीन साइट्स के नजदीक मलबा भी पड़ा हुआ है। इसका नतीजा जलस्तर के दोनों छोरों पर फैलाव के तौर पर दिख रहा है।
समय से मलबा निकालना जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि नदी की तली कितना ऊपर हुई है इस बारे में विस्तृत अध्ययन करना आज की दिल्ली के लिए बेहद जरूरी है। इसके बाद ही बगैर इको सिस्टम में ज्यादा छेड़छाड़ किए बिना ठीक तरीके से नदी के चैनल का डिसिल्टेशन किया जा सकेगा। जहां तक पुलों के निर्माण की बात है कि पानी रोककर ही पिलर खड़े किए जाते हैं लेकिन अगर इसका मलबा समय से नहीं निकाला गया तो बाढ़ के प्रवाह में अवरोध पैदा ही करेगा। वहीं, बाद में यह मलबा नदी की तलहटी को ऊंचा करेगा। इस पर सख्ती बरतने की जरूरत भी विशेषज्ञों ने बताई।
पुलों के पिलर प्रवाह में डालते है बाधा
यमुना पर अध्ययन करने वाले व सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के एनवायरमेंटल साइंस के प्रो. रामकुमार के मुताबिक, नदी के पिलर तलहटी में गाद जमने में मदद करते हैं। असल में पिलर से टकराने से पानी का प्रवाह प्रभावित होता है। नजफगढ़ और उसके बाद यमुना में गिरने वाले नालों से नदी की ऊपरी सतह में गाद बहुत ज्यादा होती है। पिलर से टकराने के बाद पानी नीचे बैठता है और गाद छोड़ देता है। इससे गाद जमने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। वहीं, पर्यावरणविद डॉ. फैयाज खुदसर का कहना है कि यमुना की तली ऊपर होने से इसका फैलाव तटों की ओर हो रहा है। दिलचस्प यह कि वजीराबाद बैराज से ऊपर और नजफगढ़ नाले के मिलने के बाद के सिल्ट में बड़ा फर्क है। ऊपर जब यमुना की तलहटी से मिट्टी निकालते हैं तो वह रेत होती है जबकि नीचे गाद।
यह हकीकत है कि नालों की गाद से यमुना की तलहटी लगातार उथली हो रही है। इससे नदी प्रवाह क्षेत्र बाढ़ के पानी को सीमित नहीं रख पा रहा है। इसके लिए नदी की बड़े पैमाने पर डिसिल्टिंग करनी होगी। वहीं, वाटरवे विकसित करने पर काम करना होगा। इससे नदी की सेहत भी बेहतर हो सकती है। साथ ही, बाढ़ का पानी नदी के दायरे में रहेगा।
– डॉ शशांक शेखर, दिल्ली विवि के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर
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