नई दिल्ली
भारत और अमेरिका के बीच बड़े समझौतों की तैयारी है। 20 जनवरी, 2025 को डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दूसरी बार शपथ लेने के बाद, मोदी सरकार सेमीकंडक्टर, मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर जैसे क्षेत्रों में बड़े सौदे कर सकती है। यह ‘मेक इन इंडिया-मेक फॉर द वर्ल्ड’ की भावना के अनुरूप होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत में रोजगार पैदा होंगे, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगा और अमेरिकी व्यवसायों को भी बढ़ावा मिलेगा।
कोविड महामारी और अमेरिका-चीन संबंधों में खटास के बाद, कई अमेरिकी कंपनियों ने भारत में अपने कारखाने स्थापित किए हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यहां निर्माण क्षेत्र में और अधिक संभावनाएं हैं। भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों के जानकार एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने बताया कि ट्रंप 2.0 के शुरुआती दौर में ही भारत को कुछ बड़े सौदों को अंतिम रूप देने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच अच्छी केमिस्ट्री को देखते हुए यह सही समय होगा।
कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी (CUTS) के महासचिव प्रदीप मेहता ने भारत-अमेरिका संबंधों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मेहता ने विनिर्माण क्षेत्र में अमेरिका की ताकत का लाभ उठाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका भारत में उत्कृष्टता केंद्र और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर खोल सकेगा।
एक्सपर्ट ने क्या सुझाव?
मेहता ने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद यह संदेश देना चाहिए कि भारत कोई संरक्षणवादी देश नहीं है जो अमेरिकी उत्पादों पर ऊंची दरें लगाता है। 2020 में, ट्रंप ने आयातित मोटरसाइकिलों, खासकर हार्ले-डेविडसन पर ऊंची दरों को लेकर भारत पर हमला किया था। तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था कि भारत में शायद दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ हैं और हार्ले-डेविडसन को भारत में भारी टैरिफ का भुगतान करना पड़ता है। उन्होंने मार्च 2017 में अमेरिकी कांग्रेस को अपने संबोधन में पहली बार इस मुद्दे का उल्लेख किया था।
‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से भारत को होगा नुकसान?
ट्रंप के फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से भारत के लिए मुश्किलें भी खड़ी हो रही हैं। भारत से जाने वाले सामानों पर ज्यादा टैक्स लग सकता है, खासकर गाड़ियों, कपड़ों और दवाइयों पर। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति में यकीन रखते हैं। लेकिन, एक अच्छी खबर यह है कि ट्रंप समझौता भी कर लेते हैं। भारत, ट्रंप की टीम से बात कर रहा है ताकि उनकी आर्थिक नीतियों को समझा जा सके और कोई रास्ता निकाला जा सके।
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