header advertisement

मेरी दिल्ली ले लेगी मेरी जान!… इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है?

अब यह सपना है जब दिल्ली की सुबहें स्फूर्तिदायक होती थीं, दोपहर गुलाबी और शामें लालिमा लिए होती थी  

दीपक शर्मा

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का आमजन आज जीवन-मरण की जद्दोजहद में है। यह जद्दोजहद रोजी-रोजगार के लिए नहीं, बल्कि जहरीली हवाओं से अपने को बचने की हैं। दिल्ली की फिजाओं में सांस लेना मुहाल हो चला है। हवा में जलने की बदबू है, आंखों-सीने में जलन है। ऐसे में जनाब शहरयार की ग़ज़ल “सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है” का सन्दर्भ भले ही दूसरा हो, मगर आज इससे दिल्ली की स्थिति का सटीक वर्णन हैं।

हालात बहुत बिगड़े हुए है। दिल्लीवासियों को नीले गगन और साफ हवा वाली जगह पर चले जाने की जरूरत महसूस हो रही है। दीपावली के दो हफ्ते बाद भी दिल्ली की सुबह मलिन और धूल-धुंध भरी है। सुबह उठते ही लोगों को पेट्रोल या डीजल के जलने जैसी गंध का अहसास हो रहा है। एयर प्यूरीफायर के मीटर खतरनाक स्तर दर्शाने वाले लाल रंग पर है।

दिल्ली में धुएं से भरा मटमैला आसमान, थमी हुई हवा, पेट्रोल-डीजल के जलने की बदबू, नजर न आने वाली लपटें, खराश भरे गले, बीमारी और जल्दी मौत के मुंह में चले जाने का भय–लोगों को डिप्रेशन महसूस कराने लगा है। वे दिन बीत गए जब दिल्ली की सुबहें ठंडी और स्फूर्तिदायक होती थीं। दोपहरें गुलाबी होती थीं और हवा में पेड़ों से गिरी पत्तियों की गंध होती थी। रक्तिम शामें, अपने साथ सर्दी का अहसास लाती थीं। लोग पार्कों-बागो में टहलते थे, सर्दी की धूप में छत पर बैठते थे। लाहौर में भी सर्दी का मौसम इतना ही खुशनुमा होता था। अब वह सब एक सपना, एक कल्पना लगता है। जो दिल्ली से बाहर जा सकते हैं, वे जा रहे हैं। जिनके सामने कोई चारा नहीं हैं, वे जितने दिन काम करते हैं उससे ज्यादा दिन बीमार होकर घर में कैद रहते हैं। चूंकि केन्द्र एवं राज्य सरकारें इस मौसमी प्रदूषण का कोई हल निकालने में विफल रही हैं, इसलिए उन्हें एक कानून बनाना चाहिए कि नवंबर से जनवरी तक के तीन महीने वर्क फ्रॉम होम एवं लर्न फ्रॉम होम हो। यदि आप स्थिति से निबटना नहीं जानते तो कम से कम आपको अपने लोगों को सुरक्षित वातावरण तो मुहैया कराना ही चाहिए।

चूंकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है। इसके कारण श्वसन, हृदय और मस्तिष्कवाहिकीय प्रणालियों से संबंधित कई तरह की दिक्कतों का सामना दिल्लीवासियों को करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण दीर्घकालिक बीमारियां और इससे मौत का भी जोखिम हो सकता है। इसके प्रतिकूल प्रभाव विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों में अधिक देखे जा रहे है। प्रदूषण के कारण प्रारंभिक स्थिति में आंखों में जलन, लालिमा और खुजली होने की समस्या सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

पिछले एक दशक से यह स्थिति लगतार बिगड़ती जा रही है। इस सबके बावजूद केंद्र की मोदी सरकार से लेकर तब केजरीवाल और अब आतिशी की दिल्ली सरकार अपने मतदाताओं की असहनीय स्थिति जिसमें जान का जोखिम तक है, से उन्हें बचाने के लिए क्या कर रहे है। दस वर्ष यानि एक दशक कोई कम समय नहीं है।

अब दिल्ली सरकार ने इतना जरूर किया कि अपने अधीन कर्मचारियों व छोटे स्कूली बच्चों पर रहम करते हुए कुछ कदम उठाये है। सरकार ने दिल्ली में औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) खतरनाक स्तर पर पहुंचने के साथ केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस सिस्टम (ग्रेप)-3 की पाबंदियां लागू कर दी। वहीं दिल्ली में छोटे बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए 5वीं कक्षा तक के स्कूलों को बंद कर दिया गया है। स्कूल अगले आदेश तक बंद रहेंगे। बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं संचालित होंगी। हालांकि शनिवार को वायु गुणवत्ता में हल्का सुधार भी हुआ है, लेकिन यह अभी भी खतरनाक स्तर पर है। सरकार ने सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों के समय में बदलाव कर दिया। नए समय के मुताबिक नगर निगम, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के कार्यालय अब अलग-अलग समय पर खुले। दिल्ली सरकार का तर्क है कि सड़कों पर ट्रैफिक जाम और प्रदूषण को कम करने के लिए अब सरकारी कार्यालय अलग अलग पर खुलेंगे जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।

यह सब तो ठीक है लेकिन आम आदमी का क्या जिसके लिए पिछले एक दशक पूर्व केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाकर उसकी रक्षा-सुरक्षा की सौगंध ली थी? क्या उनका मकसद मात्र आम मतदाता को रिझाकर वोट बटोरना भर है? वह हिंदू की कथित झंडाबरदार भाजपा कहां है?, जो पिछले एक दशक से दिल्ली के शीर्ष सिंहासन पर विराजमान है। और वह विपक्षी होकर सत्ता में वापसी का सपना संजो रही कांग्रेस कहां है? हवा में घुल चुका जहर किसी के लिए कोई मुद्दा नहीं है। आम आदमी जो दो जून की रोजी-रोटी के लिए रोज कुआं खोदता है। जो आपको सत्ता में लाने के लिए मतदान केन्द्रो की लंबी लाइनों में घंटो खड़ा रहता है, उसका क्या। किसी दल की किसी गिनती में नहीं है यह मतदाता जो मात्र वह व्यक्ति है जो शत-प्रतिशत मतदान करने वाला व्यक्ति है। निम्न, मध्यम व उच्च वर्ग के मतदाता की तरह नहीं कि जो मतदान केंद्र की भीड़ देखकर अपने मतधिकर को भी धिक्कारने में विलंब नहीं करता। सोचों-समझो-विचारों और बचा अपने उस मतदाता को जो आपको सत्ता सुख मुहैया करवाने का एकमात्र जरिया है।

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sidebar advertisement

National News

Politics