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Delhi : देनदारी से बचने के लिए खुद पर चलवाई गोली, कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिए एफआईआर के आदेश

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट धनश्री डेका ने कहा कि आरोपी मोहम्मद हारून और मोहम्मद जरीफ को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाए। एसएचओ को मामले में पता लगाना चाहिए कि हकीकत में कोई अपराध हुआ है या नहीं।

कड़कड़डूमा कोर्ट ने देनदारी से बचने के लिए खुद पर गोली चलवाने के आरोपी पर दयालपुर थाना पुलिस के प्रभारी (एसएचओ) को एफआईआर करने के आदेश दिए है। अदालत ने कहा कि मामले में शुरुआती तौर पर जांच की जाए।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट धनश्री डेका ने कहा कि आरोपी मोहम्मद हारून और मोहम्मद जरीफ को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाए। एसएचओ को मामले में पता लगाना चाहिए कि हकीकत में कोई अपराध हुआ है या नहीं।

मामला सुनने के बाद अदालत की राय है कि प्रथम दृष्टया से यह एक संज्ञेय अपराध है। इसके अलावा, यह भी जांच जरूरी है कि जमीन के कागज असल है या नहीं। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी (आईओ) आरोपियों को तभी गिरफ्तार कर सकता है, जब परिस्थितियां ऐसा करने की मांग करें। ऐसे में जांच पूरी होने  के बाद एसएचओ सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत अंतिम रिपोर्ट या आरोप पत्र दाखिल करेंगे।

रिपोर्ट एक अगस्त को दाखिल करनी होगी। याचिकाकर्ता मोहम्मद सरफराज की ओर से पेश हुए वकील निखिल सक्सेना ने दावा करते हुए कहा कि आरोपियों पर पहले से अदालत में कई मामले चल रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि आरोपियों ने उनके मुवक्किल की तरह 50 से 60 लोगों से इसी तरह से करोड़ों रुपये हड़पे हैं। देनदारी से बचने के लिए आरोपी ने खुद पर गोली भी चलवाई थी और आरोप देनदारों पर लगा दिया था। ऐसे में वह अदालत से निवेदन करते हैं कि आईओ से जांच करवाकर मामले में आरोपियों पर एफआईआर दर्ज की जाए।

पीड़ित को फर्जी आर्म्स एक्ट में फंसाया
मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मोहम्मद जरीफ ने शाहदरा स्थित न्यू मुस्तफाबाद इलाके के राजीव गांधी नगर में चौथी मंजिल पर एक संपत्ति खरीदी थी। इसकी कीमत 15 लाख रुपये है। दोनों आरोपियों ने शिकायतकर्ता को बताया कि संपत्ति का मालिक जरीफ है। ऐसे में शिकायतकर्ता ने बयाना राशि के रूप में 14 लाख रुपये का भुगतान किया और उस संपत्ति को खरीद लिया।

बकाया राशि संपत्ति मिलने के बाद देने के लिए कहा। इसके बाद जरीफ समझौते को पूरा करने में कामयाब नहीं रहा। याचिका में आरोप लगाया गया कि बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि संपत्ति आरोपी की नहीं थी। साथ ही, संपत्ति के सारे दस्तावेज जाली थे। इसके अलावा, पीड़ित ने आरोप लगाया कि हारून ने शिकायतकर्ता को झूठा फंसाने के लिए उस पर एक झूठी एफआईआर आर्म्स एक्ट में दर्ज कराई।

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