अगर आप ChatGPT से कोई सवाल पूछते हैं तो वह उसका जवाब वेबसइट्स पर उपलब्ध जानकारियों से जुटाता है। ChatGPT ही नहीं, बल्कि Gemini से लेकर Meta तक, लगभग सभी एआई बॉट्स आपके सवालों के जवाब देने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों का सहारा लेते हैं। इन जानकारियों को इंटरनेट पर मीडिया पब्लिकेशन या वेबसाइट द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। एआई चैटबॉट्स इतनी तेजी से जवाब इसलिए दे पाते हैं, क्योंकि उन्हें इंटरनेट पर यह जानकारी मुफ्त में बिना किसी झंझट के वेबसाइट्स के माध्यम से मिल जाती है। लेकिन इस प्रक्रिया में उन वेबसाइट्स को चलाने वाले पब्लिशर्स को कोई फायदा नहीं होता, बल्कि एआई के चलते वेबसाइट्स पर वीजिटर्स के न आने से उल्टा उन्हें नुकसान हो जाता है। आपका काम आसान बनाने वाले एआई चैटबॉट्स पर दुनियाभर में कॉपिराइट कंटेंट पॉलिसी को तोड़ने और डेटा की बिना इजाजत स्क्रैपिंग करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब एआई कंपनियों का यह खेल ज्यादा समय तक नहीं चलने वाला है।
भारत में भी तेज हुई कानून की मांग
अमेरिका और ब्रिटेन में पत्रकारिता कंटेंट की AI स्क्रैपिंग पर रोक के बाद अब भारतीय डिजिटल पब्लिशर्स ने भी निष्पक्ष रेवेन्यू शेयरिंग और सख्त कानूनों की मांग तेज कर दी है। भारत में डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) समेत कई संगठन इसे “डेटा चोरी” करार देते हुए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। DNPA के प्रवक्ता ने कहा, “जब पूरी दुनिया कंटेंट की अनुमति और भुगतान के महत्व को समझ रही है, तब भारतीय पत्रकारिता सामग्री को अब भी बिना किसी संवाद या नियंत्रण के स्क्रैप किया जा रहा है। सरकार को तत्काल आवश्यक कदम उठाने चाहिए।”
भारत में फिलहाल इसे लेकर न कोई स्पष्ट कानून है और न ही कोई तकनीकी ढांचा, जिससे पब्लिशर्स AI स्क्रैपिंग से खुद को बचा सकें। DNPA और अन्य संगठनों ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) के सामने कुछ मांगें रखी हैं, जैसे बगैर अनुमति AI स्क्रैपिंग को कॉपीराइट उल्लंघन माना जाए, कंटेंट ट्रेनिंग के लिए ‘सहमति आधारित एक्सेस’ को अनिवार्य किया जाए और भारत में AI के लिए लाइसेंसिंग मॉडल विकसित करने जैसी मांगें रखी गई हैं।
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