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मदर्स डे: धूप में छांव सरीखी, मुश्किल में अवतार सी है मेरी मां… एक एहसास जो हर संकट में बढ़ा देता है विश्वास

मां की नींद, उसकी भूख, उसका आराम सब कुछ बच्चे की हंसी पर कुर्बान है। चाहे वो अस्पताल की ड्यूटी हो, दुकान की व्यस्तता हो या क्लासरूम की जिम्मेदारी। हर मां के दिल का एक कोना हमेशा अपने बच्चे के लिए धड़कता है। कामकाजी मां के लिए यह सफर और भी कठिन हो जाता है।

मेरी मां… बस एक छोटा सा शब्द, लेकिन इसमे समाया है अनंत प्यार, अपनापन और बलिदान। मां सिर्फ एक रिश्ता नहीं, वो एक पूरी दुनिया है। एक ऐसा एहसास जो हर दर्द को मुस्कान में बदल देता है। तपती दोपहरी में मां छांव सरीखी है और हर मुश्किल घड़ी में अवतार जैसी लगती है।

मां की नींद, उसकी भूख, उसका आराम सब कुछ बच्चे की हंसी पर कुर्बान है। चाहे वो अस्पताल की ड्यूटी हो, दुकान की व्यस्तता हो या क्लासरूम की जिम्मेदारी। हर मां के दिल का एक कोना हमेशा अपने बच्चे के लिए धड़कता है। कामकाजी मां के लिए यह सफर और भी कठिन हो जाता है।
काम से वापस आने के बाद शाम को जब बच्चा दौड़कर उनकी गोद में आता है तो वही एक पल उनकी पूरी दुनिया को सुकून से भर देता है। मां के बिना ये संसार अधूरा है क्योंकि मां ही है जो हमें हर हाल में संभालना जानती है। मातृ दिवस पर कामकाजी महिलाओं से बातचीत की गई। उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगियों को साझा किया।

मां की नींद नहीं, उसका सपना है बच्चा
डॉ. अंकिता गुप्ता जीटीबी अस्पताल में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन उनकी असली परीक्षा अस्पताल से बाहर घर पर शुरू होती है। पांच माह का नन्हा बच्चा और तीन साल का नटखट बेटा… दोनों की देखभाल के बीच उनकी रातें अक्सर बिना नींद के रह जाती हैं। डॉ. अंकिता ने बताया कि कभी-कभी तो सिर्फ चार घंटे ही सो पाती हूं। वो मुस्कराकर कहती हैं, लेकिन सारी थकान और घर से लेकर अस्पताल तक के संघर्ष को दोनों की मुस्कान देखते ही और गोद में लेते ही दूर हो जाती है। उनका छोटा बेटा रात में बार-बार रोता है, उसे सुलाना, फिर सुबह की ड्यूटी… ये सब आसान नहीं है लेकिन जब घरवाले साथ होते हैं तो ये मुश्किल भी आसान हो जाती है। मां होने का अर्थ उनके लिए सिर्फ प्यार देना नहीं, बल्कि खुद को हर दिन भुलाकर बच्चों की दुनिया संवारना है।

मां के साथ बचपन की यादों को करें ताजा…  
आज की इस आपाधापी भरी भागदौड़ में हम अपना बचपन भूल गए हैं। याद है आपको पहली लोरी, मां की गोदी और मां के हाथों खाया निवाला। उसकी एक मुस्कान हर डर को दूर कर देती है। मां ही है जो हमारी छोटी से लेकर बड़ी गलतियों तक को माफ कर देती है। बड़े से बड़े संकट में हमारा हाथ थाम लेती थी। मां आज भी वैसी ही है लेकिन हममें से कई ने स्कूल से लेकर खेल और दोस्तों से लेकर दफ्तर के बीच इतने मशगूल हो गए कि अपनी सबसे अजीज के साथ दो पल बिताना ही भूल गए। कई दिन हो गए है ना… तो देर किस बात की है अपनी मां के साथ बिताए उन्ही पलों को याद करते हुए मां के साथ कुछ पल बिताएं और उनके साथ अपने बचपन की यादों को ताजा करें और इसे सिर्फ एक दिन ही नहीं बल्कि रोजाना करें। बच्चे तो मां के साथ अपने दिन भर की कही-अनकही साझा कर लेते हैं और जो बड़े हो गए वह भूल गए कि आज भी आप अपनी मां के लिए वही छोटे से गोलू, मोलू, गुड्डी, बिट्टो, सोनू और सुशील हो…

मां की बांहें उसके बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित जगह
निशा पाल एक शिक्षक हैं और चार साल के बच्चे की मां भी। हर सुबह जब वह स्कूल के लिए निकलती हैं तो उनका बेटा खिड़की से दूर तक उन्हें जाते हुए देखता है। दादा-दादी उसकी देखभाल करते हैं, लेकिन मां की कमी हर पल महसूस होती है। वह दिनभर मां के लौटने का इंतजार करता है छोटी-सी कॉपी और पेंसिल लेकर बैठा रहता है कि कब मां आएंगी और साथ में होमवर्क करेंगे। हर आवाज पर वह दरवाजे की ओर भागता है और जब निशा घर लौटती हैं तो बच्चा दौड़कर उनकी बाहों में लिपट जाता है मानो पूरे दिन की बेचैनी उस एक पल में सिमट जाती हो। मां और बच्चे का यह रिश्ता शब्दों से परे, सिर्फ दिल से महसूस किया जा सकता है।

मां की दुनिया में बसती है उसके बच्चे की मुस्कान   
अंतिमा एक आई शॉप में कार्यरत हैं और दो साल के प्यारे से बच्चे की मां हैं। रोज सुबह जब वो काम पर निकलती हैं तो दिल वहीं घर के दरवाजे पर ठहर जाता है जहां उनका बच्चा हाथ हिलाकर अलविदा कहता है। उन्हें सुकून है कि बच्चे की देखभाल उसके दादा और पिता मिलकर पूरी जिम्मेदारी से करते हैं। वे समय-समय पर उसे घुमाने भी ले जाते हैं, जिससे वह खुश रहता है और मां की कमी कम महसूस करता है। अंतिमा बताती हैं जब काम पर होती हूं तो बार-बार वही चेहरा आंखों में घूमता है। 8 घंटे की ड्यूटी के बाद जब वह थकी-हारी घर लौटती हैं और बच्चे की मुस्कान देखती हैं तो सारी थकान जैसे पल भर में गायब हो जाती है।

बच्चों की मुस्कान से भूल जातीं हूं थकान 
केंद्रीय विहार सोसाइटी निवासी जागृति दो बेटों की सिंगल पैरेंट हैं। वह कहती हैं कि अकेले दो बच्चों को संभालना इतना आसान नही हैं। पहले नौकरी करती थी, लेकिन इस साल जनवरी में मेरी नौकरी चली गई। ऐसे में बच्चों की अच्छी परवरिश, पढ़ाई और घर की जिम्मेदारी इन सबका बोझ कंधों पर था। मैंने क्लाउड किचन और होम ब्यूटी पार्लर का काम शुरु किया। सब कुछ एक साथ लेकर चलना बहुत कठिन हैं, लेकिन जब अपने बच्चों को पढ़ते, खेलते और मुस्कुराते देखती हूं तो लगता है सब कुछ आसान है। हां एक बात और अगर अपने काम और बच्चों से प्यार होता है तो तो सबकुछ आसान हो जाता है।

हर वर्किंग वुमन एक फाइटर है
सॉफ्टवेयर इंजीनियर शरण्या पांडेय की एक 3 साल की बेटी है। वह कहती हैं कि मां बनना एक खूबसूरत अहसास और अनुभव है, लेकिन जब आप एक वर्किंग वुमन होती हैं तो सफर आसान नहीं होता। मेरी जिंदगी उस दिन से बदल गई जब मेरी बेटी ने जन्म लिया। मीटिंग के बीच बच्ची की रोने की आवाज, नींद की कमी और हर वक्त का तनाव। धीरे-धीरे मैंने खुद को संभालना सीखा, एक संतुलन बनाया, काम बांटे और छोटी-छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करना शुरु किया। मैं मानती हूं कि हर वर्किंग वुमन एक फाइटर है।

ग्रेटर नोएडा सेक्टर पी-3 में रहने वाली पायल गुप्ता अमेरिका की एक कंपनी में फाइनेंस डाइरेक्टर के साथ-साथ एक बेटे की सिंगल पैरेंट हैं। वह बताती हैं कि घर-परिवार और नौकरी इन सब में संतुलन बनाना इतना आसान नहीं होता। सुबह 4 बजे उठती हूं। खाना बनाने के साथ घर के सारे काम करती हूं। फिर, बेटे को स्कूल भेजकर खुद ऑफिस जाती हूं। लंच ब्रेक में अपने बेटे के लिए प्रश्न पत्र बनाती हूं। फिर शाम को घर लौटकर सारा काम निपटाने के बाद उसके चैप्टर्स की रिकॉर्डिंग करती हूं। ताकि वो रिवीजन कर सके। फिर रात को उसके साथ बैठकर पढ़ाई करवाती हूं।

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