एक देश, एक चुनाव की पैरवी करते हुए कमेटी ने केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया है। जिसमें कोर्ट ने कहा था कि, “समाज को बंधन में बांधे रहना संभव नहीं है। जब समाज बढ़ता है तो उसकी जरूरतें भी बदल जाती हैं। इसलिए उन जरूरतों के आधार पर संविधान और कानूनों को बदलना पड़ सकता है।” इसके साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कोई भी एक पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को बांध नहीं सकती है। इसीलिए बुद्धिमानी से तैयार किए गए संविधान में भी अपने स्वयं के संशोधन का प्रावधान किया गया है।
इसके साथ ही कमेटी ने कहा कि तमाम विचार-विमर्श के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारी सिफारिशों से पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और मतदाताओं का विश्वास बढ़ जाएगा। कमेटी को उम्मीद है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए जबरदस्त जनसमर्थन मिल सकता है। इससे विकास प्रक्रिया के साथ सामाजिक एकजुटता को भी बल मिलेगा। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव और गहरी होगी और भारत की आकांक्षाएं साकार होंगी।
एक देश, एक चुनाव पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और उसके सहयोगी डीएमके, एनसीपी और टीएमसी ने विरोध किया है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग, विधि आयोग और कानूनी विशेषज्ञों की राय को भी शामिल किया है। साथ ही कहा है कि एक साथ चुनाव कराना जनहित में होगा और इससे आर्थिक विकास में तेजी आएगी साथ ही महंगाई पर रोक लगेगी।
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