नवीन गौतम, नई दिल्ली।
देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 26 सालों से सत्ता पाने के लिए तरस रही भारतीय जनता पार्टी दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अपने बड़े नेताओं को उतारने की तैयारी में है । लेकिन बड़े नेता मैदान में उतरने से पहले अपने लिए इस बात को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं कि वह चुनाव जीत जाएंगे क्योंकि आम आदमी पार्टी को हराना अभी उतना आसान नहीं है इसलिए वह अपने लिए ऐसा सुरक्षित चुनाव क्षेत्र चाहते हैं जहां से वह आसानी से जीत सकें।
फिलहाल तो दिल्ली में भाजपा के जो विधायक हैं उनकी सीटों पर बड़े नेताओं की नजर है तो कुछ ऐसी सीट हैं जहां कांग्रेस की सरकार के दौरान भी भाजपा जीतती रही है और जहां बड़ा चेहरा और थोड़ी सी मेहनत करने के बाद आसानी से जीत मिल सकती है ।
आज भाजपा जिस तरह से स्मृति ईरानी को दिल्ली में आगे बढ़ा रही है, संभावना है की स्मृति ईरानी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर सकती है।
बड़े नेताओं के लिए सुरक्षित सीट की तलाश है जब इसकी सुग बुगाहट जमीनी कार्यकर्ताओं नेताओं के बीच जा रही है तो उनमें निराशा का माहौल बनने लगा है । आवाज उठने लगी हैं कि बड़े नेताओं के लिए सुरक्षित सीट नहीं बल्कि उन्हें कमजोर सीट से लड़ाया जाए ताकि बड़े चेहरे का लाभ भाजपा को मिल सके। बड़े चेहरों को मटिया महल, सीलमपुर, सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, बल्लीमारान, सदर बाजार, चांदनी चौक जैसी सीटों पर उतारने की मांग उठ रही है।
भाजपा के अंदर आवाज इस बात को लेकर भी उठ रही है कि इस बार उस फार्मूले को अपनाया जाए जो वर्ष 2017 के नगर निगम के चुनाव में अपनाया गया था, जब तमाम मौजूदा पार्षदों की टिकट काट दी गई थी । भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार बिल्कुल नए चेहरे दिए जाए जिन्हें पहले मौका मिल चुका है चाहे वह नगर निगम का चुनाव लड़े हो या विधानसभा का चुनाव लड़े हो उनमें से किसी भी चेहरे को चुनाव मैदान में न उतारा जाए इसके लिए पार्टी एक गाइडलाइन तैयार कर ले। ऐसे में नए कार्यकर्ताओं को जब मौका मिलेगा तो आम जनता के बीच भी उत्साह रहेगा और भाजपा के प्रति उनका समर्थन बढ़ेगा और अगर भाजपा ने उन्हीं पुराने चेहरों को जो पहले नगर निगम या विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं उन्हीं को उतारा तो जनता निश्चित तौर पर उन्हें फिर से जनता घर बैठाएगी क्योंकि जनता उन्हें पहले अजमा चुकी है इसलिए नए चेहरों को मौका दिया जाए जिससे जनता उन्हें आजमा सके।
वैसे हरियाणा में मिली जीत से उत्साहित भाजपा के रणनीतिकार तमाम पहलुओं पर मंथन कर रहे हैं।
भाजपा नेतृत्व की हर संभव कोशिश है कि भाजपा के इंटरनल सर्वे जो वोट प्रतिशत 43 .44 आ रहा है उसे बढ़ाकर 46 प्रतिशत किया जाए, जिससे दिल्ली में सरकार बनने लायक सीट हासिल की जा सके। बता दें कि पिछले वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान 32.19 प्रतिशत और केवल तीन सीट की तुलना में वर्ष 2020 भाजपा का वोट प्रतिशत 38.51 रहा और सीट की संख्या भी 7 तक पहुंच गई।
लेकिन सीटों के मामले में वह दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई है।
अब दिल्ली में सत्ता के सूखे को मिटाने के लिए संघ के कार्यकर्ता भी जुट गए हैं। कमजोर बूथ पर विशेष फोकस है, प्रतिदिन पांच परिवारों से मिलने की रणनीति है और झारखंड महाराष्ट्र चुनाव के बाद पूरी बीजेपी और संघ को दिल्ली में लगाने की तैयारी है। उम्मीदवारों के चयन के लिए जल्दी ही कमेटियों के गठन की भी तैयारी है। जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी के लिए तीन से पांच सीट छोड़ने का इरादा भी है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के ना – ना करने के बावजूद संभावित गठबंधन पर भी नजर है । मगर तमाम तैयारियां के बीच वर्षों से मेहनत कर रहे जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच सवाल वही है क्या चुनाव मैदान में नए चेहरे होंगे या फिर पुरानों पर दांंव लगाया जाएगा।
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