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बम धमकियों से निपटने के लिए एसओपी बनें: हाईकोर्ट

अदालत ने दिल्ली सरकार, पुलिस से बम धमकियों से निपटने के लिए व्यापक कार्य योजना बनाने को कहा

देवेंद्र सिंह तोमर

नई दिल्ली, मेट्रो मीडिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार और पुलिस को राष्ट्रीय राजधानी में बम रखे होने की धमकियों और संबंधित आपात स्थितियों से निपटने के लिए विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के साथ एक व्यापक कार्य योजना बनाने का निर्देश दिया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि एसओपी में कानून प्रवर्तन एजेंसियों, स्कूल प्रबंधन और नगर निगम अधिकारियों सहित सभी हितधारकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाए ताकि निर्बाध समन्वय और कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि फर्जी धमकियां, खासकर से डार्क वेब और वीपीएन जैसे तरीकों के माध्यम से दी जाने वाली धमकियां, सिर्फ दिल्ली या भारत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये एक वैश्विक समस्या हैं, जो दुनिया भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।

उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को कई निर्देश जारी किए और शहर भर के विभिन्न स्कूलों को ईमेल के जरिए बम रखे होने की सूचनाएं बार-बार मिलने को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस की कथित निष्क्रियता और लापरवाह रवैये पर गंभीर चिंता जताने वाली याचिका का निस्तारण कर दिया।

याचिकाकर्ता एवं वकील अर्पित भार्गव की ओर से पेश अधिवक्ता बीनाशॉ एन सोनी ने कहा कि प्राधिकारियों द्वारा पर्याप्त एवं समय पर उपाय न किए जाने के कारण इन शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं अन्य हितधारकों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की यह उम्मीद कि ऐसे खतरों को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है, एक आदर्शवाद को दर्शाती है जो आधुनिक दुनिया की वास्तविकताओं से मेल नहीं खाती।

पीठ ने कहा, इसके अलावा, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को न सिर्फ घटनाओं की जांच करने का काम सौंपा गया है, बल्कि उभरते खतरों का पूर्वानुमान लगाने और उनसे आगे रहने की भी जिम्मेदारी दी गई – जो आज के डिजिटल युग में एक बड़ी चुनौती है।

अदालत ने कहा, हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एजेंसियों को अपराधियों का पता लगाने और कानून के तहत उन्हें जवाबदेह ठहराने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन ऐसी धमकियों को पूरी तरह से रोकने के लिए एक अचूक तंत्र की उम्मीद करना अवास्तविक और अव्यावहारिक दोनों है। उच्च न्यायालय ने कहा प्रतिवादी संख्या एक और दो को निवारण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए तथा यह प्रदर्शित करना चाहिए कि ऐसे कृत्य करने वाले दण्डित होने से बचे नहीं, जिससे संभावित अपराधियों को यह स्पष्ट संदेश मिल सके कि उनके कृत्यों के गंभीर परिणाम होंगे।

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