नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने यादव सिंह के खिलाफ सीबीआई की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। जस्टिस हृषिकेश रॉय और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई। गुरुवार को सुनवाई के दौरान यादव सिंह के वकील एनके कौल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीबीआई ने यादव सिंह के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्टशीट दायर करने के बाद वारंट जारी किया गया है। मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
13 जनवरी 2012 को यादव सिंह के खिलाफ गौतमबुद्धनगर में धोखाधड़ी, गबन और भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था। यादव सिंह पर कथित तौर पर दिसंबर 2011 में आठ दिनों में 954 करोड़ रुपये के 1,280 रखरखाव अनुबंधों को निष्पादित करने का आरोप है।
पीठ ने जमानत के लिए सिंह की नई याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी करते हुए कहा, ”याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी।” बता दें कि शीर्ष अदालत ने 1 अक्टूबर, 2019 को यादव सिंह को जमानत दे दी थी। शीर्ष अदालत ने 2019 में कहा था कि पक्षों के वकील को सुनने के बाद, हम ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन, याचिकाकर्ता को जमानत देना उचित समझते हैं। हालांकि, चूंकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को यह आशंका है कि अगर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया, तो सबूतों या गवाहों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है, इसलिए प्रतिवादी के पास इसे रद्द करने के लिए आवेदन करने का विकल्प खुला होगा।
25 अक्टूबर, 2019 को शीर्ष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज एक अलग और परिणामी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में यादव सिंह को जमानत दे दी थी। 2015 में ईडी ने सीबीआई द्वारा दर्ज एक एफआईआर के आधार पर यादव सिंह के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए थे। वह नोएडा प्राधिकरण, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के इंजीनियर-इन-चीफ थे।
इससे पहले, आयकर विभाग ने कहा था कि नवंबर 2014 में छापेमारी से पता चला था कि सिंह की संपत्ति उनकी आय से बहुत अधिक थी, जिसके बाद उन्हें तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने निलंबित कर दिया था। जुलाई 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपों को बेहद गंभीर बताते हुए मामले की जांच सीबीआई को करने का निर्देश दिया था।
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