गाजीपुर लैंडफिल से निकलने वाला एक नाला ड्रेन नंबर-1 में जाकर मिलता है, जो अंततः यमुना में बहता है। इसमें लैंडफिल से रिसने वाला जहरीला लीचेट (कचरा) भी प्रवाहित हो रहा है। लैंडफिल साइट के पास नहर की तरफ कोई सुरक्षा दीवार नहीं बनाई गई है। यह रिसाव पर्यावरण के लिए घातक है और भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
यह खुलासा कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में हुआ, जिसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपा गया। यह रिपोर्ट गाजीपुर लैंडफिल और कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने वाले संयंत्र पर केंद्रित थी। रिपोर्ट में बताया गया कि 26 मार्च को लैंडफिल का निरीक्षण किया गया था। एमसीडी के एक अधिकारी ने जानकारी दी कि 2019 में साइट पर कचरे की कुल मात्रा 100 लाख मीट्रिक टन थी, जो अब घटकर 85 लाख मीट्रिक टन रह गई है। विशेष रूप से मानसून के समय लीचेट के प्रवाह को टैंकों में मोड़ने के लिए नालियां बनाई गई हैं।
हालांकि, कोर्ट कमिश्नर ने रिपोर्ट में उल्लेख किया कि लीचेट का प्रवाह केवल आंशिक रूप से नियंत्रित किया गया है। लैंडफिल में अब भी बड़े कचरे के ढेर हैं और कुछ स्थानों पर मीथेन गैस के वेंट देखे गए, जिन्हें संग्रहित करने के बजाय वातावरण में छोड़ा जा रहा है। इसके अलावा लैंडफिल की सतह पर दरारें देखी गईं।
1984 में स्थापित हुआ था गाजीपुर लैंडफिल : गाजीपुर लैंडफिल साइट 1984 में बनाई गई थी। शुरुआत में यह एक निचला क्षेत्र था, जिसे ठोस कचरे के निपटान के लिए चुना गया। समय के साथ यह पूर्वी दिल्ली के मुख्य कचरा निपटान केंद्र में बदल गया, जो अब लगभग 70 एकड़ में फैला हुआ है।शुरुआत में इस लैंडफिल की अधिकतम स्वीकृत ऊंचाई 40 मीटर तय की गई थी, लेकिन लगातार कचरा डालने के कारण इसकी ऊंचाई 60 मीटर से भी अधिक हो गई है। यह स्थिति पर्यावरण और संरचनात्मक स्थि0रता के लिए न सिर्फ गंभीर खतरा पैदा कर रही है बल्कि इसकी वजह से लोगों की सेहत पर भी असर पड़ता है।
लैंडफिल के आसपास कई महत्वपूर्ण ढांचे स्थित
लैंडफिल के आसपास कई महत्वपूर्ण ढांचे स्थित हैं, जैसे पोल्ट्री बाजार, मछली और डेयरी उद्योग, पशुपालन केंद्र, सब्जी बाजार और एक बूचड़खाना। इसके पास ही एक अपशिष्ट-से-ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) संयंत्र भी है। लैंडफिल का स्थान भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में है, जिसके पीछे हिंडन नदी नहर और ड्रेन नंबर 1 बहती है। जल स्रोतों के इतने करीब होने के कारण लीचेट का रिसाव पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
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