सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 20 नवंबर को विधेयकों को मंजूरी देने में दिखाई गई देरी पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि से सवाल किया। तमिलनाडु सरकार ने यह आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि राज्यपाल ने खुद को राज्य सरकार के लिए “राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी” के रूप में पेश किया है। सोमवार को तमिलनाडु सरकार की याचिका पर फिर से सुनवाई शुरू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, “ये बिल 2020 से लंबित थे… वह तीन साल से क्या कर रहे थे?”
अदालत ने सोमवार सुबह सारे घटनाक्रम पर गौर किया और कहा, “विधानसभा ने विधेयकों को फिर से पारित कर दिया है और राज्यपाल को भेज दिया है। देखते हैं राज्यपाल क्या करते हैं,” अदालत ने मामले को 1 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
सोमवार की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और मुकुल रोहतगी (तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व) और सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता (राज्यपाल की ओर से बहस) के बीच बहस हुई। सिंघवी ने कहा कि “राज्यपाल ने बिना कोई कारण बताए ‘मैंने सहमति रोक रखी है’ कहते हुए बिल लौटा दिए… राज्यपाल ने संविधान के हर शब्द का उल्लंघन किया है।” इस पर सॉलिसिटर-जनरल ने जवाब दिया, “गवर्नर महज तकनीकी पर्यवेक्षक नहीं हैं।”
अदालत की कड़ी टिप्पणियाँ राज्यपाल रवि द्वारा दस बिल लौटाए जाने के कुछ दिनों बाद आईं हैं। जिनमें से दो पिछली एआईएडीएमके सरकार द्वारा पारित किए गए थे। नाराज तमिलनाडु विधानसभा ने शनिवार को सभी दस विधेयकों को फिर से अपनाने के लिए एक विशेष सत्र आयोजित किया, जिन्हें उनकी सहमति के लिए राज्यपाल के पास वापस भेज दिया गया।
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